राजस्थानी भाषा और संस्कृति की रक्षा ही हमारी सभ्यता की पहचान को जीवित रखेगी

बीकानेर , 30 सितम्बर। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभाग द्वारा “प्रतियोगी परीक्षा मांय राजस्थानी भाषा-साहित्य अर कला-संस्कृति रो मैतव” विषय पर एक भव्य व्याख्यान और सम्मान समारोह संत मीराबाई सभागार में आयोजित किया गया।

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इस अवसर पर राजस्थानी भाषा और संस्कृति के उत्थान पर विशेष जोर दिया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और चलकोई फाउंडेशन के संस्थापक, राजवीर सिंह चलकोई ने अपने विचार रखते हुए कहा, “राजस्थानी भाषा और संस्कृति की रक्षा ही हमारी सभ्यता की पहचान को जीवित रखेगी। आज यह भाषा न केवल राजस्थान बल्कि विश्व भर में अपनी छाप छोड़ रही है।”

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उन्होंने युवाओं को अपनी मातृभाषा की ओर लौटने और इसे सहेजने का आह्वान करते हुए कहा कि हमें आत्मसाधना करनी होगी और मिलकर काम करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियाँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी रहें। इस दिशा में योगदान देने के लिए चलकोई फाउंडेशन ने एम ए राजस्थानी में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी के लिए 11 हजार रुपये के नकद पुरस्कार की भी घोषणा की।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा, “यह अत्यंत दुःख की बात है कि हमें अपनी भाषा सीखने के लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। भाषा तो हमारे जीवन का आधार है, इसे सहेजना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।” आचार्य दीक्षित ने आगे कहा कि ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से हम न केवल अपनी भाषा और संस्कृति को जीवित रख सकते हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को इसके महत्त्व से भी अवगत करवा सकते हैं।

कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई, जिसके बाद राजस्थानी विभाग की छात्रा राधिका वैष्णव ने राजस्थानी नृत्य के माध्यम से अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के दौरान अतिथियों का शाब्दिक स्वागत करते हुए राजस्थानी विभाग की सह-प्रभारी डॉ. संतोष कंवर शेखावत ने कहा कि भाषा अपनी जड़ों से जुड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है और इसलिए राजस्थानी विभाग राजस्थानी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी कला, संस्कृति, साहित्य एवम दर्शन से परिचित करवाने का प्रयास कर रहा है।

इस कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों का सम्मान भी किया गया। जिनमें सुदेश राजस्थानी,राजू नाथ और मदन दान चारण जिन्होंने 51 गांवों में नंगे पैर घूमकर हस्ताक्षर अभियान चलाया था। इसी के साथ साइकल पर दिल्ली यात्रा करने वाले राजेश कड़वासरा, रामचंद्र सारडीवाल, शीशपाल लिंबा और राजस्थानी साफा संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले स्वरूप पंचारिया भी सम्मानित हुए।

साथ ही राजस्थानी भाषा में गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाले व प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी सम्मानित किया गया। जिसमे प्रीति राजपुरोहित, विमला हर्ष, आरती छंगाणी, सुमन शर्मा और मनीष मीणा शामिल है।

आभार व्यक्त करते हुवे स्व-वित्तपोषित योजना के प्रभारी डॉ. धर्मेश हरवानी ने कहा, “आज का कार्यक्रम यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि युवा पीढ़ी राजस्थानी भाषा और संस्कृति से दूर नहीं जा रही है, बल्कि इसे सहेजने और आगे बढ़ाने में पूरी निष्ठा के साथ काम कर रही है।” डॉ. हरवानी ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से हम न केवल अपनी भाषा और संस्कृति को जीवित रख सकते हैं,बल्कि युवा पीढ़ी को इसके महत्त्व से भी अवगत करवा सकते हैं।मंच संचालन किशोर सर ने किया ।

इस अवसर पर 1000 से अधिक प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे, जिनमें वित्त नियंत्रक अरविंद विश्नोई ,प्रोफेसर अनिल छंगाणी, प्रोफेसर राजाराम चायल, डॉ. बिट्ठल बिस्सा, डॉ गौतम मेघवंशी, डॉ अभिषेक वशिष्ठ, डॉ सीमा शर्मा, डॉ प्रगति सोबती, फौजा सिंह, डॉ गिरिराज हर्ष, डॉ प्रकाश सहारण, डॉ सुरेंद्र गोदारा, डॉ नमामी शंकर आचार्य, डॉ गौरी शंकर प्रजापत, छैलू चारण, राजेश चौधरी, हिमांशु टाक,कमल मारू , रामअवतार उपाध्याय, प्रशांत जैन, हरिराम विश्नोई, युवा समिति के हिमांशु शर्मा सहित विश्वविद्यालय के कर्मचारी ,अतिथि शिक्षक, विधार्थी, छात्र नेता एवं अन्य महाविद्यालयों से पधारे विद्यार्थी शामिल थे।

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