साध्वी दीपमाला जी का संयम स्वर्णोत्सव का आयोजन हुआ


गंगाशहर 23 मार्च। साध्वी श्री दीपमाला जी जिनके आज दीक्षा पर्याय के 50 वर्ष पूर्ण होकर 51 वें वर्ष में प्रवेश किया है। तेरापंथी सभा गंगाशहर द्वारा शान्ति निकेतन में उनकी दीक्षा के 50 वर्षो के उपल्क्ष्य में संयम स्वर्णोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री विशदप्रज्ञा जी, साध्वी श्री लब्धियशा जी, शासन श्री साध्वी श्री मंजुप्रभा जी, शासन श्री साध्वी श्री शशि रेखा जी, शासन श्री साध्वी श्री कुन्थु श्री जी, साध्वी श्री जिनबाला जी, साध्वी श्री ललितकला जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ।



सेवा केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री विशदप्रज्ञा जी ने फरमाया कि संयम जीवन की 1 घड़ी संसारिक जीवन के 1 करोड़ वर्ष के बराबर है। संयम जीवन का कोई मुल्य नहीं होता है। साध्वी श्री दीपमाला जी बहुत ही सरल व्यक्तित्व की धनी है वे हरियाणा की वीर पुत्री है।


शासन श्री साध्वी श्री कुन्थु जी ने फरमाया कि दीक्षा क्या है – जीवन विज्ञान की एक प्रयोगशाला है। आत्म हित की साधना में जो लग जाता है वह दीक्षा है। साध्वी श्री दीपमाला जी जिनकी दीक्षा की स्वर्ण जयन्ति का आयोजन बड़े ही हर्षोलास के साथ मनाया जा रहा है। साध्वी श्री दीपमाला जी बचपन से ही सीधी, सरल व सोम्य हृदय की थी। हम दोनो बचपन से ही कम बोलते थे। साध्वी श्री पिस्ता जी और साध्वी श्री प्रकाशवती जी की आपने बहुत सेवा बड़े ही तन, मन से की है। संयम जीवन निश्चिंत होता है यहां किसी भी तरह का भय नहीं होता है। साध्वी दीपमाला जी संयम के दीप जगाती रहे और अपने निर्मल जीवन में निर्मलता बनाये रखे।
शासन श्री साध्वी श्री शशिरेखा जी ने फरमाया कि अवसर्पणी काल के पांचवे आरे में 50 वर्ष निकालना बहुत बड़ा होता है साध्वी श्री दीपमाला जी ने तो अपने संयम जीवन के 50 वर्ष पूर्ण कर लिये है। आज उनके दीक्षा पर्याय के 50 वर्ष पूर्ण हो गये है अब उनको अपना आत्म अवलोकन करने का समय है सिंहावर्ती करने का अवसर है लेखा जोखा करने का समय है। आपने आचार्य श्री तुलसी से पांच महावर्तों को पालने का संकल्प लिया यानि दीक्षा प्राप्त कि। साध्वी श्री दीपमाला जी हमेशा प्रसन्नचित रहती है कभी भी आवेश में नहीं आती है। आपके संयम जीवन के 50 वर्ष पूर्ण होने की आपको खूब खूब बधाई।
साध्वी श्री ललितकला जी ने फरमाया की साध्वी श्री के साथ 1 वर्ष यहां शान्ति निकेतन में रहने का मौका मिला तब पता चला कि वे सावाग्राही नहीं बल्कि सेवादायी का कर्तव्य निभा रही है कभी भी किसी को अपना कोई काम करने के लिए नहीं बोलती बल्कि स्वयं दूसरों के कामों में लग जाती है। साध्वी दीपमाला जी हमेशा अपना आधात्मिक विकास करती रहे यही मंगलकामना है।
साध्वी श्री जिनबाला जी ने फरमाया कि साध्वी दीपमाल जी में आत्मीयता का भाव है। सेवा करने के पीछे का मूल कारण आत्मीयता और करूणा का भाव होना है। अगर आपमें करूणा और आत्मीयता का भाव नहीं है तो आप सेवा नहीं कर सकते। जिस शासन में आत्मीयता व करूणा का भाव है वह शासन गौरवशाली होता है। साध्वी श्री दीपमाला जी ज्ञान, चारित्र और तप की हमेशा आराधना करती हुई उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास करती रहे।
साध्वी श्री लब्धियशा जी ने साध्वी दीपमाला जी के संयम पर्याय के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित कार्यक्रम में फरमाया कि साध्वी श्री दीपमाला जी इतनी सरल व मृदुभाषी की धनी है कि हम इनके गुणों का क्या बखान करें। उन्होंने सम्राट आशोक व पुत्र सम्वती की कहानी सुनाकर बताया कि संयम जीवन क्या होता है।
साध्वी श्री कंचनबाला जी ने फरमाया कि आज का दिन बहुत ही शुभ दिन है बहुत ही खुशी का दिन है। साध्वी दीपमाला जी जो हर समय माला के मणकों साथ रहती है। संयम एक अमुल्य रत्न है इस संयम रत्न को जिसने प्राप्त कर लिया वह आत्म कल्याण के मार्ग पर चल दिया। संयम जीवन में जो रम जाता है उसकी आत्मा भी स्वच्छ बन जाती है। जिसने संयम पर्याय का एक वर्ष भी पूर्ण कर लिया उसने इस जन्म में सबकुछ प्राप्त कर लिया। साध्वी श्री दीपमाला जी ने तो अपने संयम जीवन के 50 वर्ष पूर्ण कर लिये है साध्वी श्री बहुत ही श्रमशील है साथ ही तपस्या में भी लगी रहती है।
साध्वी श्री दीपमाला जी ने अपने संयम पर्याय के 50 वर्ष पूर्ण होने के कार्यक्रम संयम-स्वर्णोत्सव में फरमाया कि मेरे अन्दर दीक्षा की भावना वि.सं. 2028 में हुई। साध्वी श्री पिस्ता जी का चातुर्मास श्री गंगानगर हुआ था। पांच बहिने दीक्षा के लिए तैयार हुई। ज्योती प्रभा जी को गुरूदेव ने उम्र छोटी होने की वजह से घर भेज दिया। मुझे साध्वी श्री पिस्ताजी व साध्वी श्री प्रकाशवती जी ने बहुत उपकार किया है मुझे तैयार किया पढ़ाया लिखाया और पूर्ण रूप से तैयार किया। मैं 2-3 महीने में तैयारी करके संस्था में भर्ती हो गई। आते हुए संयम को नहीं छोड़ना चाहिए। संयम का 1 क्षण और श्रावक का 100 साल बराबर होता है। मैं साध्वी श्री संघमित्रा जो विशेष याद करना चाहुंगी उन्होंने मुझे बोलना सिखाया वे मुझे कविता, मुक्तक, कहानिया देती रहती थी और मुझसे बुलवाती रहती थी। मैं जगदीश जी जैन और फूलमती देवी को नहीं भूल सकती जो मेरे संसार पक्षीय माता पिता थे जिन्होंने मुझमें अच्छे संस्कार भरे। परिवार वालों ने सब कुछ सिखाया। जब मेरा गंगानगर चातुर्मास था तब मेरे पिताजी की तबीयत खराब थी तब पिताजी ने कहा कि तुमको इधर उधर नहीं जाना है साध्वी श्री जी की सेवा करनी है। सेवा से कभी कोई भागता नहीं है मैने उनसे यह कह दिया। साध्वी प्रकाशवती जी ने मेरे जीवन का निर्माण किया।
साध्वी श्री प्रशमयशा जी ने आचार्य श्री महाश्रमण जी से प्राप्त संदेश का वाचन किया तथा उग्रविहारी तपोमुर्ति मुनि श्री कमल कुमार से ने जो गीतिका व मुक्तक साध्वी श्री जी के बारे में बताये उनका वर्णन किया। साध्वी श्री कौशलप्रभा जी ने साध्वी प्रमुखाश्री जी से प्राप्त संदेश का वाचन किया।