साध्वीश्री सोमलता जी का शुक्रवार को संथारापूर्वक देवलोकगमन

बीकानेर\ मुम्बई, 8 मार्च। गंगाशहर में जन्मी शासनश्री साध्वीश्री सोमलता जी का शुक्रवार प्रात: 7.37 बजे संथारे में दादर में देवलोकगमन हो गया है। जिनकी स्मृति सभा पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में शनिवार 9 मार्च को प्रात: 11 बजे महाड़ में आयोजित की जाएगी। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, मुम्बई ने जानकारी देते हुए बताया कि साध्वीश्री जी को चौविहार तेले में रात्रि 2.51 बजे साध्वीश्री शकुंतला कुमारी जी द्वारा (तिविहार) तथा उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी द्वारा चौविहार संथारा प्रात: 7.01 बजे दिलवाया गया। शुक्रवार प्रात: 7.37 बजे चारों तीर्थ के मध्य नमस्कार महामंत्र जाप के दौरान संथारा में आपश्री का देवलोकगमन हुआ। अंतिम यात्रा 12.15 बजे प्रारंभ हुई।

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गंगाशहर निवासी स्व. केशरदेवी एवं स्व. रतनलाल जी बैद के यहां कार्तिक शुक्ला अष्टमी 7 नवंबर 1951 को जन्में साध्वीश्री जी की गुरुदेव तुलसी के निर्देशानुसार मातुश्री वंदना जी के सान्निध्य में सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति महासती लाडोजी के कर कमलों से 14 अक्टूबर 1968 विक्रम संवत् 2025 कार्तिक कृष्णा अष्टमी पर बीदासर में मातुश्री छोगा जी के स्मारक स्थल पर दीक्षा हुई। आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा विक्रम संवत् 2074 पोष कृष्णा तृतीया चास बोकारो में आपश्री को शासन श्री साध्वी सोमलजा जी का अलंकरण प्रदान किया गया। वहीं, वर्ष 1982 विक्रम संवत् 2039 को गुरुदेव श्री तुलसी के कर कमलों से मुसालिया (मारवाड़) में अग्रगण्य बनाया गया। साध्वीश्री जी ने राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, नेपाल, भूटान, सिक्किम, गुजरात, महाराष्ट्र में धर्मसंघ की अगुवानी करते हुए धर्म ध्वजा फहरायी। आपश्री ने बीदासर, गंगाशहर एवं श्रीडूंगरगढ़ में चाकरी करके संघसेवा की। सैकड़ों बेले, तेले, अठाई इत्यादि तपस्या-उपवास करने के साथ ही आपश्री चौबीस आराधना, दशवें आलिम भक्तामर कल्याण मंदिर, आलम्बन सूत्र, तेरापंथ प्रबोध इत्यादि का नियमित स्वाध्याय करते थे। जैन तत्त्व प्रवेश भाग 1-2, पचीस बोल इक्कीस द्वार बावन बोल, शांत सुधारस, सिन्दूर प्रकर आदि का साप्ताहिक स्वाध्याय के साथ ही आपश्री को दशवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नीति शतकम, सिन्दूर प्रकर, शांत सुधारस, नाममाला आदि कंठस्थ थे। शासन श्री मुनिश्री गणेशमल जी स्वामी नानोसा महाराज, उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी स्वामी अनुज भ्राता, साध्वीश्री विनम्रयशा जी बड़ी भाभी, शासनश्री साध्वी मधुरेखा जी मौसी की बेटी, साध्वीश्री शारदा श्री जी व समणी मधुर प्रज्ञा जी मौसी तथा समणी जयंत प्रज्ञा जी आपश्री के धर्मसंघ में दीक्षित पारिवारिक सदस्य रहे। सांसारिक जीवन में आपके चार बड़े एवं तीन छोटे भाई तथा एक छोटी बहन है।

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आपके नानाजी टीकमचंद जी चौपड़ा का स्वर्गवास हुआ, उस समय आप बिहार (जलालगढ़) से गंगाशहर आये। उस समय आचार्य श्री तुलसी बीकानेर विराज रहे थे। आप अपनी माता केशरदेवी, मासी की बेटी मीनू (साध्वी मधुरेखा जी) गंगाशहर से पैदल सुबह का प्रवचन सुनने जाते। एक दिन गुरुदेव ने सहज आप लोगों की नियमितता देखकर पूछवाया कि तुम लोग नियमित व्याख्यान सुनते हो, क्या व्याख्यान समझ में आता है?
सभी ने कहा- व्याख्यान सुनने में इतना आनंद आता है कि एक दिन भी छोडऩे का मन नहीं होता। इसीलिए हम लोग गंगाशहर से सबसे पहले पहुँचते हैं, ताकि बैठने के लिए प्रथम पंक्ति में स्थान मिल सके। पूज्य प्रवर ने कई प्रश्न पूछे, जिनका सटीक उत्तर सुनकर गुरुदेव प्रसन्न हुए। गुरुदेव ने दूसरा प्रश्न पूछा- बताओ, दीक्षा कौन-कौन लोगे? दोनों बहनों ने साहस बटोरकर कहा- हम लेंगे। गुरुदेव ने फरमाया- पक्की रहना। घर लौटकर दोनों बहनें मीनू और शांति दीक्षा की तैयारी में लग गयी। उस समय पिताजी प्रदेश में थे। माताजी केशरदेवी ने साहस करके पुत्री की भावना को साकार करने में पूरा सहयोग दिया।

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भीनासर निवासी गुलाबचंद जी बैद से सलाह करके संस्था में प्रवेश करवाया। प्रारंभ से ही अध्ययन में आपकी रुचि रहती। चार वर्ष संस्था में रहे। चारों वर्ष परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आपकी तीव्र वैरागय भावना देखकर पारिवारिक सदस्यों ने पूज्य प्रवर से दीक्षा की अर्ज की। उस समय पूज्य प्रवर की दक्षिण यात्रा चल रही थी। साध्वी प्रमुखा लाडाजी बीदासर में विराजमान थी। स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव चल रहा था। भाईजी महाराज चम्पालाल जी स्वामी के मन में भावना जागृत हुई कि एक दीक्षा बीदासर लाडाजी के हाथ से हो। पूज्य गुरुदेव ने भाईजी महाराज की भावना को ध्यान में रखकर आपकी दीक्षा बीदासर में महासती लाडोजी के द्वारा घोषित की। आप मुख दृष्टि पाकर अपने आपको भाग्यशाली मानने लगी और विक्रम संवत् 2025 कार्तिक कृष्णा अष्टमी के दिन छोगा जी के स्मारक स्थल पर मातुश्री वंदना जी के पावन सान्निध्य में बीदासर की विशाल जनमंदिनी में साध्वी प्रमुखा लाडोजी के कर कमलों से दीक्षा हुई। उस दिन सोमवार था। आपका नाम सोमलता रखा गया। दीक्षा के पश्चात् आपको शासन श्री साध्वी कंचनप्रभा जी के पास नियुक्त किया गया। शासन श्री कंचनप्रभा जी ने आपको साधु जीवन के गहरे संस्कार दिये, जिसने जीवन के अंतिम श्वास तक आपको हर तरह से उन्नत बनाये रखा।

साध्वी प्रमुखा लाडोजी के स्वर्गवास के पश्चात् आपका प्रथम चातुर्मास साध्वी सुन्दर जी के साथ तत्पश्चात् शासन श्री साध्वी संघमित्रा जी, शासन श्री साध्वी कमल श्री जी के साथ भी रहना हुआ। आपकी क्षमताओं को देखकर पूज्य प्रवर ने गुरुकुल वास में रखा और विक्रम संवत् 2039 में आपको अग्रगण्य की वंदना करवाकर सरदारपुरा (जोधपुर) में आपका चातुर्मास करवाया। तब से अंतिम समय तक पूज्य प्रवरों की आप पर विशेष कृपा दृष्टि बनी रही।

आपने विहार बंगाल, असम, सिक्किम, नेपाल, भूटान की सफल यात्रायें करके गुरुदेव के दिल में विशेष स्थान बनाया। बीदासर, गंगाशहर, श्रीडूंगरगढ़ तीनों सेवा केन्द्रों मे सेवाा देकर ऋण मुक्त होकर गौरव की अनुभूति की। आपकी सहयोगिनी साध्वी कीर्तिलता जी को आपके रहते ही अग्रगण्य बनाया। तीनों बहनें (कीर्तिलता जी, शांतिलता जी, पूनमप्रभा जी) वर्षों तक आपके साथ रहीं। इन वर्षों में आपका स्वास्थ्य काफी अस्वस्थ रहने लगा। महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की पूर्ण कृपा से कई वर्षों से आपका मुम्बई में दीर्घकालीन प्रवास रहा। स्थान-स्थान पर चातुर्मास हुए। सभी जगह आपके प्रवास और चातुर्मासों की गूंज रही। आपकी व्याख्यान शैली से आबाल वृद्ध प्रसन्न थे।

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