भाषा विज्ञानी डॉ. सीताराम लालस की जयंती पर संगोष्ठी आयोजित हुयी
बीकानेर , 29 दिसम्बर। मोहनीदेवी आशाराम चूरा रोटरी शोध संस्थान में राजस्थान के प्रख्यात कोशकर्मी तथा भाषा विज्ञानी डॉ. सीताराम लालस की जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में पत्र वाचन किया। डॉ. नमामी शंकर आचार्य ने कहा कि एनसाइक्लोपीडिया आफ ब्रिटेनिक सीताराम लालस को जुबां की मशाल कह कर संबोधित किया व भारत ने उन्हें पद्ममश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
उन्होंने बताया कि लालस ने यह संकल्प लिया कि उन्हें राजस्थानी का ऐसा शब्दकोश तैयार करना है कि राजस्थानी भाषा का कोई भी शब्द नहीं छुटे । अपने व्यक्ति गत जीवन और सुख सुविधा को भूल कर दस जिल्दों में दो लाख से अधिक शब्दों का यह राजस्थानी शब्द कोश का अमर ग्रंथ तैयार हुआ।
संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ विद्वान कृष्णलाल बिश्नोई ने कहा कि लालस के द्वारा अनेकों पुस्तकों का संपादन प्रकाशन किया गया। उन्होंने लालस के पत्रों व उनके द्वारा अधुरे रहे कार्याें पर प्रकाश डालते हुए पूर्ण करने का जिक्र किया।
संगोष्ठी में बोलते हुए मोहन लाल जांगिड ने कहा कि राजस्थानी भाषा के युग पुरुष श्री सीताराम लालस ने अद्वितीय काम किया है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले इसमें हमे भी प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा संपादित विश्व के बडे शब्द कोशों में से एक है।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए राजस्थानी ख्यातनाम पृथ्वीराज रतनू ने कहा कि यदि सीताराम लालस नहीं होते तो राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग भी अधुरी होती। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा के शब्दों से भाषा को बल मिला है तथा भषा भी मजबूत हुई है। सीताराम लालस को भाषा का प्रर्वतक कहा जाता है तथा उन्हें पाणिनि, पतंजलि ओर डॉ. जोनसन के समान उचित सम्मान दिया गया है एवं प्राचीन काल के व्याकरणविद् और कोशकार के रूप में भी उचित सम्मान दिया गया है।
कार्यक्रम में सरस्वती वंदना शोधार्थि डॉ. उषा गोस्वामी ने की तथा कार्यक्रम में रोटे प्रवीण गुप्ता, ओमप्रकाश शर्मा, राजेन्द्र बोथरा आदि उपस्थित रहे। अंत में रोटे मनमोहन कल्याणी ने उपस्थित विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापित किया।