परशुराम जी के जन्मोत्सव पर होगा विशेष कार्यक्रम

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बीकानेर, 20 अप्रैल । श्री परशुराम वंशीय आदि गौड़ ब्राह्मण महासभा, देवीकुंड सागर, बीकानेर द्वारा 30 अप्रैल को कुलदेवता श्री परशुराम जी की जयंती हर्षोल्लास के साथ आयोजित की जाएगी। देवीकुंड सागर स्थित समाज के छात्रावास भवन में आयोज्य इस कार्यक्रम की शुरुआत प्रातः 10 बजे इष्ट देव की पूजा अर्चना के साथ होगी। महासभा के अध्यक्ष परमेश्वर लाल स्वामी, सचिव लीलाधर महिवाल एवं कोषाध्यक्ष भंवर लाल धामा के अनुसार जन्मोत्सव के इस आयोजन में समाज के सभी सदस्यों, वरिष्ठ जनों एवं युवाओं को आमंत्रित किया गया है। थार एक्सप्रेस द्वारा भगवान परशुराम जी के बारे में जानकारी………

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भगवान परशुराम जी, जिन्हें विष्णु का छठा अवतार और ब्राह्मणों का कुलदेवता माना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू देवता हैं। वे चिरंजीवी भी हैं, जिसका अर्थ है कि वे अमर हैं और मृत्यु को नहीं जानते। परशुराम को न्याय और सत्य के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाना जाता है, और उनकी पूजा विशेष रूप से ब्राह्मण समुदाय द्वारा की जाती है।

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परशुराम जी के बारे में कुछ मुख्य बातें

विष्णु का अवतार- परशुराम को भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक माना जाता है, और वे न्याय और धर्म के प्रतीक हैं।
ब्राह्मण कुलदेवता- वे ब्राह्मण समुदाय के कुलदेवता के रूप में पूजे जाते हैं, और उनकी पूजा ब्राह्मण परिवारों में विशेष रूप से की जाती है.
चिरंजीवी- उन्हें आठ चिरंजीवियों में से एक माना जाता है, यानी वे अमर हैं और मृत्यु को नहीं जानते।
न्याय और धर्म के प्रतीक- परशुराम न्याय, सत्य, और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं।
अस्त्र-शस्त्र विद्या में पारंगत- वे अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे और कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक भी थे.
जनजातीय इलाकों में मान्यता- परशुराम को झारखंड के आदिवासी इलाकों में भी बहुत सम्मान दिया जाता है। .
परशुराम जयंती- वैशाख शुक्ल तृतीया को परशुराम जयंती मनाई जाती है, जो उनके जन्म का दिन है।
गुरु जमदग्नि- उनके गुरु महर्षि जमदग्नि थे, जो उनके पिता भी थे।
शीर्ष शिष्य कर्ण- कर्ण, जिन्हें परशुराम ने धनुर्विद्या सिखाई थी, उनके प्रमुख शिष्यों में से एक थे।
महाभारत में भूमिका –परशुराम और कर्ण की कहानी महाभारत में भी शामिल है, जहाँ कर्ण को परशुराम द्वारा श्राप दिया गया था.
श्री परशुराम जी की पूजा में क्या शामिल होता है-
मूर्ति या चित्र की स्थापना, शुद्धता और नियम से पूजन ,आरती और भजन , कथा वाचन (परशुराम जन्म और कर्मों की कथा) , प्रसाद वितरण।

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