सूर्य प्रकाशन मंदिर ने चार साहित्यकारों का किया सम्मान


- आज के दौर में पाठकों तक पुस्तकें पहुंचाना बेहद चुनौतीपूर्ण- भ्रमर
बीकानेर, 1 अप्रैल। सूर्य प्रकाशन मंदिर के 61वें स्थापना दिवस के अवसर पर मंगलवार को चार साहित्यकारों का सम्मान किया गया।
सूर्य प्रकाशन मंदिर के डॉ. प्रशांत बिस्सा ने बताया कि बताया कि राजस्थानी लेखन के क्षेत्र में भंवरलाल ‘भ्रमर’, हिंदी-राजस्थानी के साहित्यकार एवं साहित्यिक गतिविधियों के सतत आयोजन के लिए कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी, गीतकार राजाराम स्वर्णकार तथा राजभाषा संपर्क अधिकारी के रूप में राजभाषा प्रचार के लिए हरिशंकर आचार्य का सम्मान किया गया। सभी को सम्मान स्वरूप माला, शॉल और पुस्तकों का सेट प्रदान किया गया।



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद् उमेश बिस्सा ने कहा कि आज के दौर में पाठकों तक पुस्तकें पहुंचाना, बेहद चुनौतीपूर्ण है। इसमें प्रकाशकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने कहा कि सूर्य प्रकाशन मंदिर ने गत 61 वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखे। इसके बावजूद आज देश भर में इसकी विशेष पहचान है।


वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार भंवरलाल भ्रमर ने सूर्य प्रकाश बिस्सा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बिस्सा ने उसे दौर में प्रकाशन कार्य शुरू किया,जब इसमें अनेक चुनौतियां थी। उन्होंने पुस्तक प्रकाशन में स्तर से कभी समझौता नहीं किया।
हिन्दी- राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि बीकानेर में लेखन की समृद्ध परम्परा रही है। इसमें यहां के प्रकाशकों के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में लेखन का स्तर भी प्रभावित हुआ है। इसे ध्यान रखते हुए युवा पीढ़ी को लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ाने की जरूरत है।
गीतकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि पुस्तकों का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता। उन्होंने सोशल मीडिया के दौर में पाठकों की संख्या कम होने पर चिंता जताई। युवा साहित्यकार हरिशंकर आचार्य ने कहा कि राजभाषा हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने में पुस्तकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राजभाषा को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति इसमें अपना सहयोग दें।
डॉ. प्रशांत बिस्सा ने प्रकाशन की विकास यात्रा के बारे में बताया और प्रकाशन से जुड़े अनुभव सांझा किए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. गौरी शंकर प्रजापत ने सूर्य प्रकाशन मंदिर की सृजन यात्रा की जानकारी दी। पवन पारीक ने आभार जताया।