तेरापंथ स्थापना दिवस व मंत्र दीक्षा समारोह आयोजित हुआ
गंगाशहर, 21 जुलाई। तेरापंथी सभा व तेयुप गंगाशहर के तत्वावधान में साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी व साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी के सान्निध्य में तेरापंथ स्थापना दिवस व मंत्र दीक्षा का आयोजन शांतिनिकेतन सेवा केंद्र में किया गया।
इस अवसर पर साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु उन विरले आचार्य में थे , जिन्होंने चारित्र शुद्धि को पूरा महत्व दिया। एक संगठित सुव्यवस्थित और सुदृढ़ श्रमण संघ का स्वपन्न उन्होंने देखा और तेरापंथ धर्म संघ के रूप में मूर्त रूप दिया। तेरापंथ धर्म संघ की स्थापना वि.सं. 1817 आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन हुई।
साध्वी श्री जी ने मंत्र दीक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान युग भौतिकता की चकाचौंध में हमारी संस्कृति का मूल तत्व धुंधला होता जा रहा है। टीवी और मोबाइल की संस्कृति से बच्चों में निषेधात्मक चिंतन उत्तेजना और तिरस्कार के भाव बढ़ते जा रहे हैं एवं संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं। ऐसे में आवश्यक है कि एक ऐसा सूत्र जो बचपन में मार्गदर्शन ,यौवन में साहस और आत्मविश्वास तथा बुढ़ापे में शांतिमय सहारा दे सके। और वह सूत्र है नमस्कार महामंत्र। नमस्कार महामंत्र का का प्रतिदिन जप करना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साध्वी चरितार्थ प्रभा जी ने बच्चों को मंत्र दीक्षा की शपथ दिलवाई।
इस अवसर पर साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने कहा कि जिस व्यक्ति के जीवन मे गुरु होता है तब उस व्यक्ति का जीवन खेल बन जाता है और जो व्यक्ति गुरु के अनुशासन में रहता है तो उस व्यक्ति का जीवन उत्सव बन जाता है। जिसके जीवन में गुरु होते है वहां आनंद ही आनंद है। जैसे जीने के लिए श्वास आवश्यक है वैसे ही जीवन विकास के लिए व आध्यात्मिक विकास के लिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है।
साध्वी श्री ने बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन तेरापंथ धर्म संघ को गुरु के रूप में आचार्य श्री भिक्षु मिले। गुरु वह होता है जिसमें गरिमा , गौरव एवं गुरुत्व होता है। गुरु की गरिमा का पहला लक्षण है संयम। आचार्य भिक्षु में अनुतर संयम था। आचार्य भिक्षु के जीवन में अनेक कष्ट आए, अत्यंत संघर्ष करना पड़ा लेकिन आचार्य भिक्षु कभी संयम पथ से विचलित नहीं हुए। गुरु बनने की अर्हता उसमें होती है जो कष्ट झेलने की क्षमता रखते है।
उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु को 5 वर्ष तक पूरा आहार नहीं मिला एवं ना रहने के लिए पर्याप्त जगह मिली, अनेक कठिनाइयां उठानी पड़ी, लेकिन फिर भी आचार्य भिक्षु सत्य के मार्ग पर चलते रहे और भगवान महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करते रहे। दुनिया में सबसे बड़ी शक्ति होती है सहन करने की शक्ति, जिस व्यक्ति में सहनशीलता होती है वही व्यक्ति आगे विकास कर सकता है। अनेक उदाहरणों से साध्वी श्री जी ने बताया कि आचार्य भिक्षु में सहनशीलता गजब की थी। आचार्य श्री भिक्षु सत्य के प्रति पूर्ण समर्पित थे।
साध्वी श्री स्वस्थ प्रभा जी ने अपने विचार कथानक के रुप में व्यक्त किये।
तेरापंथी सभा के मंत्री जतन लाल संचेती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि तेरापंथ धर्म संघ का जो आज विस्तार देख रहे हैं वह मुनि श्री थिरपाल जी व मुनि श्री फतेहचन्दजी के द्वारा आचार्य भिक्षु से भगवान महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने के आग्रह करने से संभव हुआ। आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर की वाणी के मौलिक सिद्धांतों को सरल भाषा में जनता के सामने रखा।
संचेती ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने कहा कि हिंसा करना पाप है, करवाना पाप है और उसका अनुमोदन करना भी पाप है। अहिंसा का पालन करना धर्म है, करवाना धर्म है और उसके पालन का अनुमोदन करना भी धर्म है। आचार्य भिक्षु ने सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, चरित्र और तप को ही मोक्ष का मार्ग बताया।
कार्यक्रम की शुरुआत कन्या मंडल के द्वारा मंगलाचरण से हुई। अणुव्रत समिति के मनोज छाजेड़, तेयुप सहमंत्री ऋषभ लालाणी, महिला मंडल की मंत्री मिनाक्षी आंचलिया , तेरापंथी सभा के कोषाध्यक्ष रतनलाल छलाणी, आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष हंसराज डागा, श्रीमती कनकप्रभा सेठिया, IPS अमृत सामसुखा, IAS रूपाली सामसुखा, ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम में तेरापंथ सभा की ओर से IPS अमृत सामसुखा व IAS रूपाली सामसुखा का सम्मान पताका पहनाकर व साहित्य भेंट करके जैन लूणकरण छाजेड़, सभा अध्यक्ष जतनलाल छाजेड़ एवं सभा, तेयुप एवं महिला मंडल के पदाधिकारियों द्वारा किया गया।दोनों अधिकारियों का परिचय कोषाध्यक्ष रतनलाल छलाणी ने दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन तेयुप मंत्री भरत गोलछा द्वारा किया गया|