साधु जीए तो लाख का और मरे तो सवा लाख- मुनिश्री हिमांशु कुमार

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  • तेरापंथ सभा चेन्नई ने साध्वी श्री लावण्या श्री के स्मृति सभा का आयोजन किया

चेन्नई , 8 अगस्त। साधु अपने जीवन में जिन नियमों को स्वीकार करता है उन नियमों का आजीवन पालन कर वह अपने संयम जीवन को सुसज्जित करता है और संयम को सफल बना देता है।

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यह विचार मुनि हिमांशु कुमार जी ने साध्वी श्री लावण्या श्री के स्मृति सभा के दौरान कहे उन्होंने बताया संयम से जीवन सुरभित होता है और वह स्वयं के कल्याण के साथ दूसरों के कल्याण का भी मार्ग प्रशस्त करता है। मुनि ने बताया कि साधु जीए तो लाख का और मरे तो सवा लाख का यह कथन इसलिए उपयोगी है कि संयम मय जीवन का समापन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.

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साध्वी श्री लावण्य श्री ने जिन उत्साह भावों के साथ गुरुदेव तुलसी के कर कमलों से दीक्षा स्वीकार की उसी उत्साह से उन्होंने अपने संयम जीवन का पालन किया मुनिश्री ने कहा कि परिवार से किसी का दीक्षित होना विशेष बात है। मुनिश्री ने साध्वी श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन से लोगों को परिचित करवाया। साथ ही उन्होंने स्वरचित गीत के माध्यम से साध्वी के प्रति अपने शुभ एवं मंगल भाव समर्पित किये।
इससे पूर्व मुनिश्री हेमंत कुमार ने कहा कि साधु का जीवन एक प्रेरणा है और आज के समाज में साधु से शिक्षा लेने की अत्यंत आवश्यकता है। जहां आज हमारी सामाजिकता निरंतर खंडित होती जा रही है उसमें परिवर्तन लाने के लिए और सामाजिकता को स्वस्थ बनाने के लिए साधु के जीवन से हम प्रेरणा लें।

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उन्होंने बताया कि आज घर में चाहे बेटा हो या बहू वे कई बार अविनय पूर्ण व्यवहार कर लेते हैं और उस अविनय पूर्ण व्यवहार से बचने के लिए हमें साधु के जीवन से विनय का गुण स्वीकार करना चाहिए और समर्पण भाव को जागृत कर अपने जीवन को स्वस्थ बनाना चाहिए।

साध्वी श्री लावण्या श्री ने संघ की सेवा में अपना विशेष योगदान दिया एवं गुरु दृष्टि की आराधना करते हुए अपने रत्नाधिक साध्वियों की सेवा कर उन्हें चित्तसमाधि प्रदान की उनकी आत्मा शीघ्र मोक्ष को प्राप्त करे यही मंगल भावना।
इस दौरान सभा अध्यक्ष अशोक खतंग, महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमती लता पारख ने भी अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत की । कार्यक्रम का कुशल संचालन सभा के मंत्री गजेंद्र खटेड ने किया।

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