जाति जनगणना पर क्या होगा सरकार का अगला कदम ?

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सरकार ने अगली जनगणना में जाति गणना की घोषणा की

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 बिहार चुनाव से पहले छीना विपक्ष का बड़ा मुद्दा

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नई दिल्ली , 30 अप्रैल। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA) ने बुधवार को आगामी जनगणना में जाति के आंकड़ों को शामिल करने को मंजूरी दे दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संवैधानिक ढांचे को रेखांकित करते हुए यह घोषणा की, जो जनगणना को संघ का विषय बनाता है। यह कदम जाति-आधारित गणना और शासन, नीति और राजनीति में इसके उपयोग पर लंबे समय से चली आ रही बहस को पुनर्जीवित करता है।केंद्र ने बुधवार को घोषणा की कि आगामी जनसंख्या जनगणना में जाति जनगणना भी शामिल होगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस कदम को “सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध” सरकार का “ऐतिहासिक निर्णय” बताया।

यह निर्णय, जिसमें कांग्रेस नीत विपक्ष की एक प्रमुख मांग भी शामिल है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीपीए) की बैठक में लिया गया ।

बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जाति जनगणना “हमारे समाज के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को मजबूत करेगी जबकि राष्ट्र प्रगति करना जारी रखेगा”।

गैर- भाजपा शासित तेलंगाना और कर्नाटक ने पहले ही अलग-अलग जाति सर्वेक्षण करवा लिए थे, क्योंकि केंद्र ने ऐसी जनगणना की मांग को खारिज कर दिया था। बिहार, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, ने भी 2023 में ऐसी जनगणना करवाई थी, जब जेडीयू आरजेडी और कांग्रेस के साथ सत्ता में थी। इस बीच, केंद्र अब तक इस मुद्दे पर काफी हद तक चुप रहा है।

विपक्ष ने पिछले लोकसभा चुनावों से पहले जाति जनगणना को एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोगों को उनकी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व देने का वादा किया था।

वैष्णव ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना संघ का विषय है। उन्होंने कहा, “कुछ राज्यों ने यह (जाति सर्वेक्षण) अच्छे से किया है, जबकि कुछ अन्य ने ऐसे सर्वेक्षण पूरी तरह से राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से किए हैं।”

वैष्णव ने कहा, “यह दर्शाता है कि हमारी सरकार अपने समाज और देश के मूल्यों और हितों के लिए प्रतिबद्ध है, जैसे अतीत में हमारी सरकार ने किसी भी वर्ग में तनाव पैदा किए बिना समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की थी।”

यही कारण है कि सरकार की ओर से फैसले की घोषणा के साथ फिर से राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल जहां इसे अपनी जीत बता रहे हैं वहीं भाजपा की ओर इतिहास स्पष्ट किया गया और कहा गया कि जाति जनगणना पहली बार होने जा रही है। इस फैसले के बाद एकबारगी जहां देश का ध्यान पाकिस्तान से हटकर घरेलू राजनीति पर आया वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक झटके में विपक्षी का बड़ा चुनावी मुद्दा भी छीन लिया।
अक्टूबर-नवंबर में बिहार चुनाव है जहां विपक्षी महागठबंधन इसे ही सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में था। अब चुनाव में श्रेय की होड़ छिड़ेगी जहां राजग की ओर से यह बताया जाएगा कि आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना होने जा रही है। फैसले की जानकारी देते हुए सूचना व प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विभिन्न राज्यों में जाति जनगणना के नाम पर जाति सर्वे पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने साफ किया कि संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची में जनगणना को रखा गया है, इसीलिए राज्यों ने जाति जनगणना कराने का अधिकार नहीं है।

जाति जनगणना की 10 प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

  • जातिगत आंकड़ों को शामिल करने का सीसीपीए का निर्णय एक नीतिगत बदलाव को दर्शाता है, जो एससी/एसटी आंकड़ों को छोड़कर 1931 से अनुपस्थित जाति गणना को पुनर्जीवित करता है।
  •  वैष्णव ने दोहराया कि केवल केंद्र सरकार ही आधिकारिक तौर पर जनगणना कर सकती है, उन्होंने राजनीतिक उद्देश्यों से किए गए राज्य स्तरीय सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता को खारिज कर दिया।
  •  वैष्णव ने कांग्रेस और भारत गठबंधन की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने पारदर्शिता या कानूनी जनादेश के बिना राजनीतिक लाभ के लिए जाति सर्वेक्षण का इस्तेमाल किया।
  •  स्वतंत्रता के बाद की जनगणना (1951-2011) में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े शामिल थे, लेकिन व्यापक जाति गणना को बाहर रखा गया था।
  •  अंतिम पूर्ण जाति-आधारित जनगणना 1931 में की गई थी। यद्यपि जाति संबंधी आंकड़े 1941 में एकत्र किए गए थे, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के वैश्विक संकट के कारण इसे कभी प्रकाशित नहीं किया गया था।
  •  उचित जाति जनगणना के बिना, केवल अनुमान ही काम आते हैं – जैसे मंडल आयोग का ओबीसी के लिए 52 प्रतिशत का आंकड़ा – जिसका उपयोग नीति निर्धारण और चुनावी रणनीति के लिए किया जाता है।
  • यूपीए सरकार ने सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) शुरू की, लेकिन केवल सामाजिक आर्थिक डेटा जारी किया गया – जाति डेटा रोक दिया गया।
  •  हालांकि पंकजा मुंडे जैसी भाजपा नेताओं और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने जनगणना का समर्थन किया है, लेकिन राजनीतिक जटिलताओं के कारण इसका कार्यान्वयन अक्सर रुका हुआ है।
  •  पिछले प्रयासों में नौकरशाही और वर्गीकरण संबंधी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कई जाति नाम, ओवरलैपिंग श्रेणियां और अंतर-जाति और प्रवासी व्यक्तियों की अस्पष्ट स्थिति जैसे मुद्दे सटीक डेटा संग्रह को जटिल बनाते हैं।
  •  अलग-अलग राज्य ओबीसी की अलग-अलग सूचियाँ रखते हैं, जिनमें से कुछ में सबसे पिछड़ा वर्ग जैसी उप-श्रेणियाँ शामिल हैं। इन विसंगतियों ने एकीकृत जाति डेटा सेट बनाने के पिछले प्रयासों को जटिल बना दिया है।

स्वरूप तय करने के लिए बन सकती है सर्वदलीय समिति

2011 के सामाजिक आर्थिक और जातीय जनगणना (एसईसीसी) से सीख लेते हुए सरकार इसका स्वरूप तय करने के लिये सर्वदलीय समिति का गठन कर सकती है। 2011 की एसईसीसी में 1931 के 4147 जातियों की तुलना में 46.80 लाख जातियां दर्ज की गई थी।
इस बार सरकार जनगणना के साथ-साथ जातीय जनगणना कराने का फुलप्रूफ माडल तैयार करना चाहती है। मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार इस पर आम राय बनाने की कोशिश कर सकती है और उसका सबसे अच्छा तरीका सर्वदलीय समिति का गठन है। जिसकी अनुसंशाओं के अनुरूप जातीय जनगणना कराई जाएगी।

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