कषाय मुक्ति से ही प्राप्त होता साधना का शिखर -मुनि हिमांशुकुमारजी
चेन्नई , 13 सितम्बर। साधना के मार्ग पर बढ़ने के लिए कषाय मुक्ति जरूरी है। अन्य दोस्त, सम्बंधी कुछ समय, वर्ष या जन्मों के हो सकते है, लेकिन कषाय अनन्त काल से, जन्मों से हमारे साथ बंधा हुआ है, दोस्त बना हुआ है। उसके कारण हम अपने आत्म स्वरूप को नहीं पहचान पाए। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री हिमांशुकुमारजी ने तेरापंथ सभा भवन, साहूकारपेट में ‘कषाय मुक्ति’ प्रवचनमाला के अन्तर्गत धर्मपरिषद् को कहें।
मुनिश्री ने कहा कि कषाय के चार प्रकार में अनन्तानुबन्धी (कोध्र, मान, माया, लोभ) भव भम्रण को बढ़ाता रहता है। सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है। अप्रत्याख्यानी कषाय में व्यक्ति गलती को जानता है, मानता है। फिर भी वह त्याग नहीं कर पाता। श्रावक नहीं बन पाता। तीसरे प्रत्याख्यानी कषाय में वह कुछ त्याग करता है और चौथे संज्वलन कषाय में व्यक्ति साधु बनकर पूर्ण कषायों से मुक्त बनकर वीतरागी, केवली बन सकता है।
मुनि श्री हेमंतकुमारजी ने कहा कि साधक को स्वीकृत नियमों की सम्यक् आराधना करनी चाहिए। आराधना के मार्ग से भटकाने वाले अनेक प्रलोभन मिलते है, आते है। क्षणभर की आसक्ति व्यक्ति के भवभ्रमण को बढ़ा सकती हैं। कुछ समय का सुख दीर्घकालिक दुःखों का कारण बन सकता है।
तपस्वी युगल संदेश भण्डारी और प्रेरणा भण्डारी को आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान करवाते हुए तप के साथ ज्ञान के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। तपस्वियों का अभिनन्दन किया गया।