भाषा, साहित्य, संस्कृति में लिप्यंतरण व अनुवाद की भूमिका महत्त्वपूर्ण- निर्मोही

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  • मंडावा में हुए कार्यक्रम में जोधपुर के कथा संस्थान की ओर से बागड़ोदा के मूल निवासी साहित्यकार देवी प्रसाद बागड़ोदिया को अगर चंद नाहटा लिप्यंतरण सम्मान

चूरू/मंडावा/जोधपुर, 2 दिसंबर। जोधपुर के कथा संस्थान की ओर से दिए जाने वाले राज्य स्तरीय कथा अलंकरण श्रृंखला के सिलसिले में रविवार रात्रि को मंडावा के होटल कास्टले के मोती बाग स्थित रंगमंच पर आयोजित एक कार्यक्रम में लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार, अनुवादक एवं लिप्यंतरणकर्ता देवी प्रसाद बागड़ोदिया को ‘अगरचंद नाहटा लिप्यंतरण सम्मान 2023-24’ प्रदान किया गया।

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कथा संस्थान के सचिव जाने-माने साहित्यकार मीठेश निर्मोही, मुख्य अतिथि चूरू एडीपीआर लेखक कुमार अजय तथा विशिष्ट अतिथि साहित्यकार मंशाह नायक ने बागड़ोदिया को सम्मान प्रदान किया। सम्मान स्वरूप उन्हें शॉल, श्रीफल एवं सम्मान पत्रा भेंट किया गया। कार्यक्रम के दौरान दुर्गाप्रसाद बागड़ोदिया बैंगलोर, प्रभुदयाल बागडोदिया नोएडा, श्यामसुंदर मोदी मुंबई, रवि सिंघल कोलकाता, पवन धीरासरिया गुवाहाटी, कुसुम चौधरी मुंबई, रवि बाजोरिया पुणे, मीतू गुप्ता हैदराबाद, सविता बागड़ोदिया डिब्रूगढ़, इंदु बगड़िया कोलकाता, हिमांशु बागड़ोदिया, प्रेरणा, अभिषेक सरोवा आदि भी मौजूद रहे।

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इस मौके पर कथा संस्थान के सचिव मीठेश निर्मोही ने कहा कि भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विकास में अनुवाद एवं लिप्यंतरण की गहरी भूमिका है। भारत जैसे देश में, जहां वैविध्यपूर्ण संस्कृति है, यह भूमिका और भी अहम हो जाती है। उन्होंने बागड़ोदिया के साहित्यिक योगदान की सराहना करते हुए कहा कि असम जैसे दूरस्थ प्रदेश में जन्म व निवास के बावजूद बागड़ोदिया ने अपने मन में हमेशा मातृभूमि के प्रति अनुराग रखा और अपने अनुवाद कार्य से राजस्थान के साहित्य और संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम किया।

मुख्य अतिथि कुमार अजय ने बागड़ोदिया के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि साहित्य साधना के काम में व्यक्ति को बहुत सारी चीजों का त्याग करना होता है और यह एक तरह से तपस्वी जैसा कार्य है। इस कार्य को एक दायित्व समझकर आजीवन उसका निवर्हन करना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। बागड़ोदिया ने अनुवाद एवं लिप्यंतरण जैसे दुष्कर कार्य में खुद को लगाकर एक महत्ती कार्य किया है और साहित्य की अनुपम सेवा की है। उन्होंने साहित्यकारों के सम्मान और अनवरत सक्रियता के लिए मीठेश निर्मोही की सराहना की और कहा कि स्वयं साहित्य सर्जक होते हुए भी दूसरों की साधना को सम्मानित करने का यह कार्य अपने आप में महत्त्वपूर्ण और अनूठा है।

साहित्यकार मंशाह नायक ने बागड़ोदिया के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए बताया कि वर्ष 1939 में डिब्रूगढ़, असम में जन्मे देवी प्रसाद बागडोदिया का पूरा लेखन असमिया संस्कृति को पूरे देश में फैलाने के लिए जाना जाता है। इन्होंने असमिया से हिन्दी एवं हिन्दी से असमिया में कई महत्त्वपूर्ण अनुवाद किये हैं। बागड़ोदिया ने असम के महत्वपूर्ण साहित्यकार ज्योति प्रसाद अग्रवाल की संपूर्ण साहित्यिक कृतियों का असमिया से हिंदी में अनुवाद किया है। उन्होंने असम में भक्ति संस्कृति को फैलाने वाले प्रसिद्ध समाज सुधारक महापुरुष शंकर देव की महत्वपूर्ण कृतियों ‘गुणमाला’ तथा ‘बोरगीत’ का हिंदी अनुवाद किया है तथा माधव देव द्वारा रचित ‘नाम घोसा’ जिसे असम की भागवत गीता माना जाता है, का भी हिन्दी में अनुवाद किया है।

उन्होंने मीराबाई के भक्ति गीत संग्रह व संक्षिप्त जीवनी का असमिया में अनुवाद किया है, जिसके लिए मीरा स्मृति संस्थान, चितौडगढ़ द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया है। बागड़ोदिया ने हिंदी, असमिया, अंग्रेजी और राजस्थानी की चार सौ लोकोक्तियों के संकलन का महत्वपूर्ण काम भी किया है। इन्हें केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ‘ट्रांसलेटर ऑफ रिमार्केबल स्टैंडर्ड सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है । इसके अलावा फूलचंद खंडेलवाल समिति अवार्ड, असम सरकार का साहित्यिक सम्मान, सज्जन जैन स्मृति साहित्य पुरस्कार भी इन्हें मिल चुके हैं।

 

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