फेफड़ों से संबंधित रोगों की प्रारंभिक देखभाल, शीघ्र निदान और प्रारंभिक हस्तक्षेप के महत्व को उजागर करना इस वर्ष का लक्ष्य – डॉ गुंजन सोनी

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इन उपायों से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी के मरीज रह पाएगें स्वस्थ – डॉक्टर गुंजन सोनी
बीकानेर15 नवंबर।
विश्व सीओपीडी दिवस वर्ष 2002 से हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को मनाया जाता रहा है। यह दुनिया भर की जनता के बीच क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम है।
सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ. गुंजन सोनी जो एक प्रतिष्ठित श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉक्टर है बताते है कि एक और जोखिम भरा रोग होने के बावजूद भी सीओपीडी को उचित प्रबंधन और इलाज के साथ ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा, उचित इलाज और जीवनशैली में परिवर्तन द्वारा अन्य फेफड़े के रोग होने या इससे फेफड़ों के कैंसर होने के जोखिम को भी काफी कम किया जा सकता है।
डॉक्टर सोनी ने बताया कि इस वर्ष 2023 के लिए सीओपीडी दिवस की थीम “सांस लेना ही जीवन है – पहले कार्य करें“ निर्धारित की गयी है। इस वर्ष की थीम का उद्देश्य फेफड़ों से संबंधित रोगों की प्रारंभिक देखभाल, शीघ्र निदान और प्रारंभिक हस्तक्षेप के महत्व को उजागर करना है।

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सीओपीडी रोग का लक्षण

डॉक्टर गुंजन सोनी के अनुसार फेफड़ों के कई रोग, जो सांस के रास्ते में रुकावट पैदा कर देते हैं, जिसके कारण सांस लेना कठिन हो जाता है.
फेफड़ों में हवा की थैलियों (ऐल्वीयोलाइ) में सूजन (वातस्‍फीति) और लंबे समय से सांस की नली में सूजन (क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस) सीओपीडी के आम लक्षण हैं.
सीओपीडी से फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती.
अन्य लक्षणों में सांस फूलना, सांस लेने में घरघराहट की आवाज़ या लंबे समय तक चलने वाली खांसी शामिल हैं.
स्वास्थ्य पेशेवरों के अनुसार, वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी गंभीर श्वसन समस्याएं हो सकती हैं। उनका कहना है कि दिल्ली की प्रदूषित हवा में सांस लेना एक दिन में लगभग 10 सिगरेट पीने के हानिकारक प्रभावों के बराबर है.

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सीओपीडी रोग का कारण

डॉ. सोनी ने कहा कि वायु प्रदूषण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है। वायु प्रदूषक एल्वियोलर लेवल पर फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। एल्वियोली वह थैली होती हैं, जहां कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन गैस का एक्सचेंज होता है। ऐसे में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर की वजह से इन एल्वियोली को नुकसान हो सकता है, जो सीओपीडी का कारण बनता है।

सूक्ष्म कण यानी फाइन पर्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) और अन्य प्रदूषक फेफड़ों में अंदर तक प्रवेश कर सकते हैं, जिससे एयरवेज में सूजन और जलन हो सकती है। हवा में मौजूद इन प्रदूषकों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से ऑक्सीडेटिव तनाव और फेफड़ों के टिशूज को नुकसान हो सकता है। खासतौर पर पहले से रेस्पिरेटरी संबंधी समस्याओं वाले व्यक्ति वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं.


इन तरीकों से करें सीओपीडी से बचाव

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) को रोकने और इससे बचने के लिए सबसे पहले जरूरी है अपने फेफड़ों की रक्षा करना।
फेफड़ों को हेल्दी रखने के लिए सबसे जरूरी है तंबाकू के धुएं यानी धूम्रपान से बचना। धूम्रपान बंद करने और सेकंड हैंड स्मोकिंग से बचने से सीओपीडी के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।
इसके अलावा प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी कदम उठाना, सभी जरूरी गाइडलाइंस को फॉलो करना और कम से कम प्रदूषकों के संपर्क में आकर भी इसका खतरा कम कर सकते हैं।
अपने घर के अंदर हवा का स्तर बेहतर बनाए रखने के लिए पर्याप्त वेंटिलेशन की व्यवस्था करें। साथ ही क्लीनिंग एजेंट और खाना बनाने के दौरान होने वाले धुएं के संपर्क को कम कर आप इनडोर एयर क्वालिटी को बेहतर बनाए रख सकते हैं।
व्यायाम की मदद से भी आप अपने फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा इन्फ्लूएंजा और निमोनिया का टीका लगाकर भी सीओपीडी को खराब करने वाले रेस्पिरेटरी संक्रमण को रोकने में मदद मिलती है।

सीओपीडी को रोकने के लिए एलर्जी और अस्थमा जैसी पुरानी बीमारियों को मैनेज करना, नियमित जांच कराना और निर्धारित दवाओं का समय से सेवन करना जरूरी है।
बचाव करने वाले इनहेलर (रेस्क्यू इनहेलर) और सांस के साथ या मुंह से लिए जाने वाले स्टेरॉइड लक्षणों और आगे होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं.

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