ज्योति वधवा रंजना की तीन विधाओं में रचित तीन पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

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मातृ शक्ति में आवश्यकतानुसार ज्योति,जागृति और ज्वाला है -स्वामी विमर्शानन्द गिरी’

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बीकानेर 19 मई। नवकिरण सृजन मंच के तत्वावधान में बहुआयामी साहित्यकार ज्योति वधवा रंजना की तीन विधाओं की तीन पुस्तकों  का लोकार्पण  होटल राजमहल में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए स्वामी विमर्शनंद गिरिजी ने कहा कि मातृ शक्ति के तीन रूप है। वह ज्योति के रूप में प्रकाशपुंज है जो घर परिवार और समाज में जागृति लाने का काम करती है , जब कोई संकट आ जाय तो वह ज्वाला का रूप धारण कर अपनी शक्ति का परिचय दे सकती है। ज्योति वधवा की पुस्तकों में ये तीनों रूप किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्गार अभिव्यक्त करते हुए कवि कथाकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि साहित्य सृजन एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है। ज्योति वधवा के साहित्य में प्रेम और सद्भावना की अभिव्यक्ति है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि डॉ. मेघना शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रश्न करना और उनका समाधान खोजना दोनों ही रचनाकार के धर्म होते हैं। ज्योति वधवा की पुस्तकों में ये भाव किसी न किसी रूप में विद्यमान है।

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विशिष्ट अतिथि इंजी आशा शर्मा ने कहा कि  सामाजिक विद्रूपता कहिए या सामाजिक विसंगतियां, ज्योति की रचनाओं का मुख्य अंग है। आप समाज में व्याप्त बुराइयों के विरुद्ध एक सकारात्मक जन चेतना जागृत करना चाहती हैं। इस अवसर पर डॉक्टर मदन सैनी ने कहा कि साहित्यकार समाज का आईना है। परिवेश में जो महसूस होता है उसको वह अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में नवकिरण सृजन मंच के अध्यक्ष  डॉक्टर अजय जोशी ने कहा कि ज्योति वधवा बहु आयामी साहित्यकार है। इनकी तीनों पुस्तकें अलग अलग विधा की है। उनकी एक पुस्तक कविता संग्रह, दूसरी कहानी संग्रह और तीसरी लघुकथा संग्रह  है।
कार्यक्रम समन्वयक कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने जीवन के रंग लघुकथाओं के संग पुस्तक पर पत्र वाचन करते हुए कहा कि अधिकांश लघुकथाएं इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं कि इसमें अनुभव की ताजगी और अभिव्यक्ति के सच्चेपन की सौंधी गंध बराबर दिखाई देती है। कहीं परिस्थितियों से जूझने की हिम्मत संजोई गई है तो कहीं टूटता हुआ मनुष्य भी मौजूद है। रिक्त होती संवेदना हो या गरीबी की मार से टूटता आदमी, समय की रफ्तार के साथ आगे बढ़ता इंसान हो या खुद में परिवर्तन न कर पाने के कारण पीछे छूटता इंसान। ये लघुकथाएं हमारे समाज की समूची तस्वीर प्रस्तुत कर रही है। इन लघुकथाओं को पढ़ते हुए यह आभास बराबर बना रहता है कि हम जिस रचना संसार से होकर गुजर रहे हैं वह बेहद इमानदारी और मासूमियत से भरा है। इसकी सीमाओं में जीवन के प्रायः सभी रूप, रंग और गंध देखे जा सकते हैं। एक ललक जो प्रायः सभी लघुकथाओं में देखने को मिली है, वह है. बेहतर इंसान बनने की ललक।
कविता संग्रह काश मन परिन्दा होता पर पत्र वाचन करते हुए डॉक्टर गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि कविता मात्र भावों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि समय और समाज की अंतर्ध्वनि होती है। एक कवि अपने समय के यथार्थ, परिवेश और मानवीय चेतना को शब्दों के माध्यम से जीवंत करता है। डॉक्टर कृष्णा आचार्य ने कहानी संग्रह पर पत्र वाचन में कहा कि ज्योति वधवा की कहानियां घर परिवार और समाज में व्याप्त विसंगतियों और परिवेश से उत्पन्न घटनाओं की साहित्यिक अभिव्यक्ति है। लेखिका ज्योति वधवा रंजना का परिचय इंजी गिरिराज पारीक और जवाहर जोशी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन हास्य व्यंग्य कवि बाबू बमचकारी ने किया। आभार ज्ञापन तुषार वधवा ने किया। कार्यक्रम में नवकिरण सृजन मंच से भारती, यामिनी जोशी, शब्दरंग से सौरभ और प्रेरणा प्रतिष्ठान से प्रेमनारायण व्यास ने ज्योति वधवा का सम्मान किया।
कार्यक्रम में जगदीश वधवा, रवि पुरोहित, बी.एल. नवीन, कमल रंगा, कासिम बीकानेरी, गिरिराज पारीक, संजय श्रीमाली, एडवोकेट इसरार अहमद कादरी, मुनीन्द्र अग्निहोत्री, राजश्री भाटी, मोनिका गौड़, महेश उपाध्याय, नीतू जोशी, सौरभ स्वर्णकार, भगवती पारीक, सुनील शादी सहित साहित्य और संगीत जगत से जुड़े अनेक गणमान्यजन  उपस्थित थे।

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