राजस्थानी व्याकरण और इतिहास लेखन क्षेत्र में प्रोफेसर स्वामी का अविस्मरणीय योगदान
प्रोफेसर नरोत्तम दास स्वामी की 119वीं जयंती के अवसर पर विचार गोष्ठी आयोजित
बीकानेर, 2 जनवरी। राजस्थानी भाषा के साहित्यकार प्रोफेसर नरोत्तम दास स्वामी की 119वीं जयंती के अवसर पर मंगलवार को सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट के तत्वावधान् में म्यूजियम परिसर स्थित संस्था सभागार में विचार गोष्ठी आयोजित की गई।
गोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी थें। उन्होंने कहा कि राजस्थानी व्याकरण और इतिहास लेखन के क्षेत्र में प्रोफेसर नरोत्तम दास स्वामी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। जोशी ने कहा कि प्रोफेसर स्वामी ने सीमित संसाधनों के बावजूद भी राजस्थानी साहित्य लेखन को नए आयाम दिए। उन्होंने कहा कि युवा साहित्यकारों को इनके कृतित्व से सीख लेनी चाहिए। राजेन्द्र जोशी ने कहा कि उस दौर में नरोत्तम दास स्वामी ने अनेक राजस्थानी पत्रिकाओं का संपादन किया।
उन्होंने अपना जीवन राजस्थानी साहित्य की सेवा को समर्पित कर दिया। जोशी ने कहा कि सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा ऐसे साहित्यकारों की स्मृति में साहित्यिक गतिविधियों का सतत आयोजन किया जा रहा है।
विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि नरोत्तम दास स्वामी ने शोध परम्परा को विशेष पहचान दिलाई। उन्हें राजस्थानी साहित्य का ‘पाणिनी’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में उनके रचना कर्म की प्रासंगिकता में वृद्धि हुई है।
मुख्य वक्ता के रूप में विचार रखते हुए व्यंगकार-सम्पादक डाॅ.अजय जोशी ने प्रोफेसर नरोत्तम दास स्वामी के रचना संसार के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नरोत्तम दास स्वामी ने सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट की मासिक पत्रिका ‘राजस्थान भारती’ का संपादन भी किया। जोशी ने कहा कि राजस्थान भारती वर्तमान में प्रोफेसर स्वामी की परम्पराओं को निर्वाहित कर रहा है।
इससे पहले अतिथियों ने उनके चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की। कवि जुगल पुरोहित ने स्वागत उद्बोधन देते हुए प्रोफेसर नरोत्तम दास स्वामी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला । पुस्तकालयाध्यक्ष विमल शर्मा ने आभार जताया। कार्यक्रम का संचालन विजय जोशी ने किया। इस दौरान अनेक लोग मौजूद रहे।