आचार्य तुलसी के निर्वाण स्थल का अवलोकन कर श्रद्धांजलि अर्पित की

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  • बोथरा भवन में पुनः हुआ जैन धर्म की दो धाराओं का मधुर मिलन

गंगाशहर, 1 जुलाई। बीकानेर के बोथरा भवन में आज एक बार फिर जैन धर्म की दो प्रमुख धाराओं – खरतरगच्छ और तेरापंथ – के संतों का हृदयस्पर्शी मिलन हुआ। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिन मणि प्रभ सूरीश्वरजी महाराज की आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर , मुनि मंथन प्रभ सागर व बाल मुनि मीत प्रभ सागर का उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी से जब मधुर मिलन हुआ और वार्ता का क्रम प्रारंभ होने वाला था, तभी उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने मुनिगणों से कुर्सियों पर बैठने का निवेदन किया। इस पर मुनि मेहुल कुमार जी ने विनम्रतापूर्वक कहा, “हमें मुनि श्री से ज्ञान प्राप्त करना है, इसलिए हम नीचे ही बैठेंगे।” उनके इस कथन को सुनकर सभी श्रावक-श्राविका भाव विभोर हो गए और उनकी विनम्रता की सराहना की।

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मुनिश्री मेहुल कुमार जी ने कहा कि कल वे पहली बार किसी तेरापंथी संत से इतनी लंबी चर्चा कर पाए और वे मुनि श्री कमल कुमार जी के वात्सल्य भाव से प्रभावित होकर ही आज पुनः उनके पास आए हैं।

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मुनि श्री कमल कुमार जी स्वामी ने तेरापंथ के विकास की बात बताते हुए गुरुदेव तुलसी के दूरदर्शी चिंतनों पर सबका ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने बोथरा भवन की विस्तृत चर्चा की और आचार्य श्री महाश्रमण जी के युगीन चिंतनों पर प्रकाश डाला। मुनि श्री श्रेयांस कुमार जी ने बोथरा भवन में सज्जित चित्रों और फोटुओं को दिखाते हुए उनके इतिहास को भी बताया। मुनि श्री कमल कुमार जी ने मुनि विमल विहारी जी, मुनि प्रबोधकुमार जी, मुनि नमि कुमार जी और मुनि मुकेश कुमार जी का खतरगच्छ के मुनिगणों से परिचय करवाया ।

इस वार्ता के समय खरतरगच्छीय अध्यक्ष अपने सहयोगी साथियों के साथ उपस्थित थे। संयोगवश, दुर्ग भिलाई से पधारे स्थानकवासी समाज के गणमान्य भाई और तेरापंथी भाई-बहन भी इस अवसर पर मौजूद थे, जिससे सकल श्वेताम्बर समाज इस चर्चा और वार्ता का साक्षी बन सका। मुनि श्री कमल कुमार जी ने तेरापंथ भवन भी दिखाया, जहां गुरुदेव का देवलोक गमन हुआ था। खतरगच्छ के मुनिगणों ने आचार्य तुलसी के निर्वाण स्थल का अवलोकन कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

यद्यपि मुनि श्री कमल कुमार जी के मौन का समय हो गया था, इसलिए अधिक वार्ता नहीं हो सकी, फिर भी उपस्थित सभी दर्शक इस मधुर मिलन से खूब प्रभावित हुए। यह समागम जैन धर्म के विभिन्न संप्रदायों के बीच सौहार्द और एकता का एक सुंदर उदाहरण बना।

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