हमें जानना है कितना चंदा आया, ECI पर किस बात पर भड़का सुप्रीम कोर्ट; दिए 5 सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला रखा सुरक्षित, जानें क्या क्या कहा ?
नयी दिल्ली ,3 नवम्बर। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ नेभारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) को सभी राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के जरिए 30 सितंबर, 2023 तक मिले चंदे की जानकारी प्राप्त करने और इसे कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है। संविधान पीठ ने आयोग से राजनीतिक दलों के चंदे की जानकारी सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में सील बंद लिफाफे में पेश करने का निर्देश दिया है।
शीर्ष अदालत ने गुरुवार को एलेक्टोरल बॉन्ड योजना की चुनौतियों पर केंद्र की प्रतिक्रिया पर सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी ने योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश की गई कई चुनौतियों पर अदालत में अपनी दलीलें दीं।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ नेचुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ नेसुनवाई के दौरान आयोग को दो सप्ताह मेंराजनीतिक दलों के चंदे का ब्यौरा पेश करनेका आदेश दिया। इससेपहले, शीर्षअदालत नेइस बांड के जरिए राजनीतिक दलों को मिलनेवालेधन का अब तक का ब्यौरा नहीं होनेपर निर्वाचन आयोग को आड़े हाथ लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने एलेक्टोरल बॉन्ड योजना की चुनौतियों पर केंद्र की प्रतिक्रिया पर सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि योजना को गोपनीयता के लिए डिज़ाइन किया गया है।
एजी ने अदालत से कहा कि चुनावी बांड योजना सभी योगदानकर्ताओं के साथ समान व्यवहार करती है और प्रत्येक कानून की एक अलग समझ मौलिक रूप से गलत है। सभी में गोपनीयता है। यह योजना किसी भी व्यक्ति के मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है।
ब्यौरा रखनेके लिए निर्वाचन आयोग बाध्य
पीठ नेकहा कि 12 अप्रैल, 2019 के उसके अंतरिम आदेश के तहत राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन का अब तक का ब्यौरा रखने के लिए निर्वाचन आयोग बाध्य है। इससे पहले, निर्वाचन आयोग की ओर से अधिवक्ता अमित शर्मा ने संविधान पीठ को बताया कि आयोग की यह धारणा थी कि 12 अप्रैल 2019 का आदेश सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनावों के संबंध में जारी किए गए चुनावी बांड से संबंधित था।
अदालत से स्पष्टीकरण लेना चाहिए था
जस्टिस संजीव खन्ना ने भी आयोग से कहा कि यदि आदेश को लेकर कोई संदेह या संशय की स्थिति थी तो आपको (आयोग) अदालत से स्पष्टीकरण लेना चाहिए था। उन्होंनेआयोग से कहा कि जब आप अदालत आ रहे थे तो आपके पास चंदे का ब्यौरा होना चाहिए था, हमने उस दिन अप्रैल, 2019 के अंतरिम आदेश को पढ़ा और हम सभी ने एक विचार व्यक्त किया और हमें उम्मीद थी कि आयोग अदालत में ताजे आंकड़े के साथ आएंगे एं ।’
सुप्रीम कोर्ट को अटर्नी जनरल ने क्या बताया
एजी ने शीर्ष अदालत को बताया, “हम एक अनियमित प्रणाली से एक विनियमित प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं। कोई यह नहीं कह सकता कि मैं प्रत्येक क़ानून को अलग से देखूंगा और उन पर सवाल उठाऊंगा।” एजी ने अदालत से कहा, “हम इस सिद्धांत को स्वीकार नहीं कर सकते कि एक अधिकार जो मौलिक अधिकार की सुविधा देता है या इसे सार देता है, वह स्वयं एक गारंटीकृत अधिकार है।”
दानकर्ता की पहचान उजागर करने को नहीं कहेंगे : मुख्य न्यायाधीश
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान साफ किया कि फिलहाल ‘भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से राजनीतिक दलों को दान देनेवालों की पहचान उजागर
करने का निर्देश देने को नहीं कहेंगे। उन्होंने कहा कि फिलहाल दान देनेवालों का पहचान जानने के बारे में किसी की दिलचस्पी नहीं है, लेकिन हम इसकी (दान) मात्रा जानना चाहेंगे।
पहलेदान देने की एक सीमा होती थी।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि पहले कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जानेवाले दान पर एक सीमा होती थी और उन्हें शुद्ध लाभ का सिर्फ एक फीसदी दान करने की अनुमति थी। लेकिन मौजूदा चुनावी बांड योजना के जरिए वह कंपनी भी भी दान कर सकती है जिनका टर्न ओवर शून्य है।
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता नेकहा कि सिर्फ लाभ कमाने वाली कंपनी ही राजनीतिक दलों को चंदा दे सकती हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘किसी कंपनी द्वारा केवल एक विशिष्ट प्रतिशत के दान की अनुमति देने की आवश्यकता के अभाव में, मात्र ₹1 रुपये लाभ वाली कंपनी भी दान कर सकती है। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने भी कहा कि ‘यह एक बहुत ही वैध चिंता है।’
वैकल्पि क प्रणाली विकसित करनेका सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया कि मौजूदा चुनावी बांड योजना में व्याप्त खामियां दूर करनेऔर राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एक वैकल्पिक प्रणाली
तैयार की जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘हम सिर्फ नकद प्रणाली की ओर नहीं जाना चाहते हैं, हमारा मानना है कि इसे एक आनुपातिक, अनुरूप प्रणाली में करें जो इस चुनावी बांड योजना की गंभीर खामियों को दूर करता है।’मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि सिर्फ विधायिका या कार्यपालिका ही ऐसा कार्य कर सकती हैऔर न्यायालय उस क्षेत्र में कदम नहीं उठाएगा।
सीजेआई का जवाब
एजी के सवाल पर सीजेआई ने जवाब दिया कि पुट्टास्वामी के फैसले के बाद इस तर्क में बदलाव आया है। सीजेआई ने कहा, “संविधान के तहत निजता के अधिकार को स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन हम इसे जीवन, गरिमा, प्रस्तावना मूल्यों आदि के अधिकार के साथ देखते हैं।” एसजी मेहता ने अपनी दलील में कहा कि शीर्ष अदालत ने पुट्टास्वामी फैसले में सूचनात्मक गोपनीयता को एक मौलिक अधिकार माना है।
नागरिकों के जानने के अधिकार पर, एसजी ने कहा कि गोपनीयता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के विपरीत नहीं है। यह कभी-कभी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का मार्ग प्रशस्त जानने के अधिकार पर, एजी ने कहा कि यह दो प्रकार की स्वतंत्रताओं के बीच संतुलन का एक उदाहरण है – एक नकारात्मक और एक सकारात्मक स्वतंत्रता – इस प्रकार का संतुलन तब आता है जब हमारे पास बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक विचार होते हैं।
एसजी ने अदालत को समझाया कि जो पार्टी धन प्राप्त कर रही है वह जानती है कि उसे किससे पैसे मिले, लेकिन कोई और नहीं जानता। जस्टिस खन्ना ने पूछा, “अगर ऐसा है तो इसे क्यों नहीं खोला जाए? जैसा कि सब जानते हैं। सिर्फ वोटर को ही जानकारी नहीं है।” एसजी मेहता के तर्क को सुनते हुए कि इस योजना का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया में नकदी को कम करना है।
सीजेआई ने पांच महत्वपूर्ण विचार रखे
1. चुनावी प्रक्रिया में नकदी को कम करने की जरूरत
2. अधिकृत बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता
3. गोपनीयता द्वारा बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित करना
4. पारदर्शिता
5. किकबैक्स को वैध बनाना
सीजेआई ने आगे कहा, “ऐसा नहीं है कि आप ऐसा करें या पूरी तरह से नकदी पर वापस जाएं। आप कोई और तरीका डिजाइन कर सकते हैं जिसमें इस प्रणाली की खामियां न हों – पूरी तरह पारदर्शिता हो।” अब इस मामले में याचिकाकर्ता अपना जवाब दाखिल करेंगे।