महाराष्ट्र में एनसीपी और दोनों शिवसेना का क्या हुआ, जानिए दोनों में कौन असली ?
मुंबई, 4 जून। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में न सिर्फ जनादेश आया है बल्कि असली और नकली का भी फैसला हो गया। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने उद्धव की शिवसेना और एनसीपी (शरतचंद्र पवार) को नकली बताकर तंज कसे थे, मगर जनता ने अपने जनादेश में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की मुराद पूरी कर दी। चुनाव आयोग से मान्यता हासिल करने के बाद शिंदे की शिवसेना पांच सीटों पर सिमट गई। इसी तरह घड़ी चुनाव चिह्न पर हक पाने वाले अजित पवार भी एसीपी ब्रांड के साथ सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी। बीजेपी खुद 12 सीट पर ही कब्जा बनाए रखने में कामयाब होते नजर आ रही है, उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ। इससे उलट पिछले चुनाव में 2 सीट जीतने वाली कांग्रेस 11 सीटों पर जीत हासिल करने वाली है।
जल गई उद्धव की मशाल, शरद ने बजा दी तुरही
एक साल पहले 2 जुलाई 2023 को अजित पवार ने चाचा शरद पवार के खिलाफ बगावत कर दी थी। करीब 40 विधायक भी उनके समर्थन में आ गए। 8 विधायकों के साथ अजित पवार एनडीए की शिंदे सरकार में शामिल हो गए थे। फिर पार्टी पर अधिकार का मामला चुनाव आयोग, विधानसभा स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां उन्हें घड़ी चुनाव चिह्न भी मिल गया। इसके बाद वह एनसीपी के मुखिया भी बन गए। इससे पहले जून 2022 में एकनाथ शिंदे बागी बने। वह 16 विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे के खिलाफ चले गए। करीब 15 दिनों के ड्रामे के बाद उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया और महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार बनी।
यह मामला भी चुनाव आयोग तक पहुंचा। आयोग ने पार्टी का नाम और सिंबल तीर कमान शिंदे के हाथ में दे दिया। तकनीकी नजरिये से शिंदे की शिवसेना और अजित की एनसीपी असली पार्टी बन गई। चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को शिवसेना(यूबीटी) और एनसीपी ( शरदचंद्र पवार) को नया नाम और सिंबल मिला। उद्धव ठाकरे इस लोकसभा चुनाव में ‘मशाल’ और शरद पवार ‘तुरही बजा रहे आदमी’ के साथ मैदान में उतरे।
जनता ने कर दिया असली-नकली का फैसला
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए और एमवीए में असली और नकली पर बवाल हुआ। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्धव की सेना और पवार की एनसीपी को नकली बताया। चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि पीएम मोदी और बीजेपी ने शिंदे गुट और अजित पवार को ‘असली’ बनाने की पूरी कोशिश की। अगर यह कोशिश कामयाब हो जाती तो ठाकरे परिवार और शरद पवार की राजनीति कुंद पड़ जाती।
मगर चुनाव में उद्धव ठाकरे ने खुद को बाला साहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी बताते हुए जनता से फैसला करने की अपील कर दी। लोगों की सहानुभूति उद्धव के साथ गई और चुनाव में वह 10 सीटे जीतकर ‘असली’ बन गए और सरकारी कागजों में असली रहे शिंदे की सेना नकली बन गई। ऐसा ही हाल एनसीपी का रहा और शरद पवार 7 सीटें जीतकर साबित कर दिया कि पार्टी उनके दम ही चलती है, सिंबल पर नहीं। ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को शिवसेना और एनसीपी में तोड़फोड़ महंगी पड़ी। खुद बीजेपी को 11 सीटों का नुकसान हुआ। दूसरी ओर, पार्टी में टूट के बाद उद्धव ठाकरे और शरद पवार और मजबूत बनकर उभरे हैं।
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