विधानसभा में राजस्थानी भाषा की गूंज
अंशुमान सिंह और रविंद्र सिंह भाटी का जताया आभार
बीकानेर, 20 दिसंबर। नवनिर्वाचित विधायकों को करोड़ों लोगों की जन भावना, अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान मातृभाषा राजस्थानी में शपथ लेने का अनुरोध राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा किया गया था। इस बाबत अपनी मातृभाषा राजस्थानी का मान-सम्मान रखते हुए बीकानेर की मरुधरा के लाडले सपूत युवा विधायक अंशुमान सिंह भाटी ने सबसे पहले आज 16वीं विधानसभा में बतौर विधायक राजस्थानी में अपनी शपथ पूरी ली। उसके बाद में स्पीकर महोदय ने टोका, ऐसी स्थिति में भी राजस्थानी के इस लाडले सपूत ने अपनी बात और अपनी भाषा की सशक्त पैरोकारी की। उन्होंने यहां तक कहा कि मैंने इस बाबत कल नोटिस ईमेल के जरिए भेजा था। फिर भी उन्हें पुन: हिन्दी में शपथ दिलाई गई।
राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति के प्रति सच्ची समर्पित भावना रखने वाले ऐसे युवा विधायक अंशुमान सिंह भाटी की राजस्थानी जगत प्रशंसा कर रहा है। वहीं राजस्थानी युवा लेखक संघ के प्रदेशाध्यक्ष और राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंग ने उनका आत्मिक आभार मानते हुए साधुवाद ज्ञापित किया।
इसी महत्वपूर्ण राजस्थानी मान्यता से जुड़ी हुई बात पर युवा विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने भी बतौर विधायक अपनी एक बार तो शपथ राजस्थानी में पूरी कर ली थी। उनका भी आत्मिक आभार और साधुवाद। इन दोनों युवा राजस्थानी समर्थक विधायकों ने राजस्थान की विधानसभा में राजस्थानी में शपथ लेने की बात कर राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता और प्रदेश में दूसरी राजभाषा बने उसकी अप्रत्यक्ष रूप से सशक्त परोपकारी करी है। जिससे राजस्थानी मान्यता आंदोलन को बल मिलेगा। उनके इस सकारात्मक प्रयास से देश और विदेश में रहने वाले करोड़ों राजस्थानी समर्थकों में प्रसन्नता व्याप्त हो गई।
विधानसभा में बतौर विधायक राजस्थानी में शपथ लेने के सकारात्मक प्रयास विधायक भीमराज भाटी और विधायक डूंगरराम गेदर ने भी किए उनका भी रंगा ने आभार ज्ञापित किया। रंगा ने इस बाबत कहा कि यह पहला मौका है जब विधानसभा में कांग्रेस, भाजपा और निर्दलीय विधायकों ने राजस्थानी में शपथ लेने का सकारात्मक प्रयास एवं पहल की है। जिसमें दो युवा विधायकों ने तो पहले अपनी बतौर विधायक शपथ राजस्थानी में लेकर इतिहास रच दिया उसके बाद में स्पीकर द्वारा प्रावधानों का हवाला देकर पुन: हिन्दी में शपथ दिलाई।
रंगा ने बताया कि माननीय स्पीकर महोदय द्वारा राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं होने के कारण शपथ नहीं लेने का प्रावधान बताया। जबकि राजस्थानी में शपथ लेने की पहल करने वाले विधायकगणों ने इस बाबत अपने तर्क भी प्रस्तुत किए। जिसे स्वीकार नहीं किया गया। जबकि देश में छत्तीसगढ़ राज्य की छत्तीसगढ़ी भाषा संवैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है फिर भी वहां के विधायकों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में शपथ ली थी।
आज राजस्थान की विधानसभा में राजस्थानी भाषा में मान्यता लेने की गूंज से निश्चित तौर पर जहां एक ओर करोड़ों लोगों की मातृभाषा का मान-सम्मान हुआ है वहीं राजस्थानी मान्यता आंदोलन को भी बल मिला है। आशा है कि शीघ्र ही राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता और प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनने की स्थितियां बनेगी।