पांच जिला कलेक्टरों को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी किए गए समन पर रोक
चेन्नई , 30 नवम्बर। मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को अवैध रेत खनन की आय के साथ कथित मनी लॉन्ड्रिंग जांच के संबंध में तमिलनाडु के पांच जिला कलेक्टरों को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी किए गए समन पर रोक लगा दी। अदालत ने समन पर तीन सप्ताह के लिए रोक लगाई है, लेकिन डीएमके के अनुरोध के अनुसार ईडी जांच पर रोक नहीं लगाई है। वहीं कलेक्टरों और राज्य सरकार को तीन सप्ताह में ईडी के सवालों का जवाब देना होगा।
न्यायमूर्ति एसएस सुंदर और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की दो न्यायाधीशों वाली मद्रास उच्च न्यायालय की पीठ ने कल अरियालुर, वेल्लोर, तंजावुर, करूर और तिरुचिरापल्ली जिलों के कलेक्टरों की ओर से राज्य लोक विभाग के सचिव के नंथाकुमार द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला आज तक के लिए टाल दिया था।
याचिका में जांच एजेंसी ईडी के समन को अमान्य करने की मांग की गई है, जिसमें कलेक्टरों को अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र के भीतर रेत खनन कार्यों के बारे में विवरण प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न तिथियों पर व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य है। जांच एजेंसी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत समन जारी किया।
अपनी याचिका में नंताकुमार ने तर्क दिया कि ईडी ने जांच की आड़ में, जिला कलेक्टरों को समन जारी करने की एक व्यापक और मनमानी प्रथा शुरू कर दी है।
तमिलनाडु सरकार की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि ईडी के पास ऐसी बेलगाम शक्तियां नहीं हैं और कलेक्टरों को उसका समन संघवाद की भावना के खिलाफ है। यह दावा करते हुए कि उसने अवैध रेत खनन मामलों में एफआईआर दर्ज की है और वो विवरण देने को तैयार हैं, उसने तर्क दिया कि केंद्रीय एजेंसी को केवल राज्य सरकार के माध्यम से विवरण मांगना चाहिए और कोई भी जांच उसकी सहमति से होनी चाहिए।
आईआईटी के एक विशेषज्ञ के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए, ईडी ने दावा किया था कि पूरे तमिलनाडु में 4,500 करोड़ रुपये का अवैध रेत खनन हुआ था और उसने आरोप लगाया था कि इस आय का दुरुपयोग किया गया था। इसने दावा किया कि उसके पास कलेक्टरों को बुलाने का अधिकार है। हालांकि, कल न्यायाधीशों ने कहा था कि एजेंसी के पास सीमित शक्तियां हैं।
सत्तारूढ़ द्रमुक ने भाजपा पर विपक्ष शासित राज्यों में राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय सहित केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है और ईडी मामलों में सजा की दर लगभग ना के बराबर है।
ये एक अंतरिम आदेश है, इसे विपक्ष के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि ये मुद्दा एक लंबी कानूनी लड़ाई में बदल सकता है, जिसे ईडी कानूनी रूप से चुनौती दे सकता है।