लक्ष्मीनारायण रंगा साहित्य के मौन ऋषि थे-स्वामी विमर्शानन्द जी
- रंगा का समृद्ध साहित्य माानवीय संवेदना का सच्चा दस्तावेज है-मनोज दीक्षित
- कुलपति ने महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में रंगा के नाम से पीठ प्रारंभ करने का विश्वास दिलाया
बीकानेर, 10 मार्च। देश के ख्यातनाम साहित्यकार, रंगकर्मी, चिंतक एवं शिक्षाविद् लक्ष्मीनारायण रंगा की स्मृति में आयोजित तीन दिवसीय समारोह ‘सृजन सौरम-हमारे बाऊजी’ का आगाज स्व. रंगा को श्रद्धा सुमन एवं भावांजलि अर्पण के साथ नागरी भण्डार स्थित नरेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम में हुआ।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए शिवबाडी मठ के अधिष्ठाता स्वामी विमर्शानन्द गिरी जी ने कहा कि लक्ष्मीनारायण रंगा साहित्य के मौन ऋषि थे। उन्होंने बीकाणै का गौरव अपनी बहुआयामी प्रतिभा के माध्यम से पूरे देश में ऊँचा किया। उनका साहित्य एवं अन्य कला के प्रति सारा समर्पण मानवीय चेतना को समर्पित रहा। स्वामी जी ने रंगा के विराट व्यक्तित्व से नई पीढी को प्रेरणा लेकर उनकी समृद्ध साहित्यिक एवं कला परंपरा को आगे ले जाना होगा। स्व. रंगा ने अपनी मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति आत्मिक लगाव के साथ सृजनरत रहे। आपकी राजस्थानी भाषा की मान्यता के संदर्भ में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान को समाज हमेशा याद रखेगा।
समारोह के मुख्य अतिथि महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि स्व. रंगा द्वारा सृजित संपूर्ण साहित्य मानवीय संवेदना का सच्चा दस्तावेज है एवं उनकी सम्पूर्ण रचनाशीलता सामाजिक सरोकारों को समर्पित रही। इस अवसर पर कुलपति दीक्षित ने स्वामी जी एवं सदन की भावना का मान रखते हुए लक्ष्मीनारायण रंगा की स्मृति में महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में उनके नाम से एक पीठ प्रारंभ करने का विश्वास दिलाया। कुलपति दीक्षित ने आगे कहा कि आपके हिन्दी और राजस्थानी भाषा के साहित्य पर अधिकाधिक शोध हो साथ ही नई तकनीक का प्रयोग होना चाहिए। जिससे उनके रचना संसार से आने वाली पीढियां इसका लाभ ले सके।
प्रारंभ में स्व. रंगा के बडे पुत्र कमल रंगा ने अतिथियों एवं उपस्थित सैकड़ों विभिन्न कलानुशासन के गणमान्यों का अभिनन्दन करते हुए रंगा जी के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण साहित्यक एवं सामाजिक प्रसंगों को साझा किया।
समारोह में स्व. रंगा जी के हिन्दी साहित्य पर अपना आलोचनात्मक पत्रवाचन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार-आलोचक डॉ. रेणुका व्यास ‘नीलम’ ने कहा कि स्व. रंगा अपने सृजन के माध्यम से साम्प्रदायिक सौहार्द, राष्ट्रप्रेम और नैतिकता की पैरोकारी की। साथ ही उन्होंने सभी विधाओं में लिखते हुए अपने विषयों को नई अर्थवता एवं आधुनिक बोध प्रदान किया। आपकी रचनाएं कई संदर्भ एवं नई व्याख्याओं के साथ पाठकों से अपना रागात्मक रिश्ता कायम करती है।
समारोह में स्व रंगा जी के राजस्थानी साहित्य पर अपनी आलोचकीय प्रस्तुति देते हुए पत्रकार नाटककार एवं आलोचक हरीश बी. शर्मा ने उनके सम्पूर्ण सृजन आलोक को नैसर्गिक चेतना का रचनात्मक स्वर बताते हुए कहा कि आपने कई पीढ़ियों को सृजन संस्कार देकर एक सृजनात्मक अवदान दिया है। स्व रंगा ने साहित्य सृजन के लोकतंत्र की स्थापना की वे विचारों की गुलामी और झंडों की जरूरत को भंग करते हुए व्यक्ति की निजता और अभिव्यक्ति के पैरोकार थे। हरीश बी. शर्मा ने आगे कहा कि आज एक पूरी पीढी है, जिसने लक्ष्मीनारायण रंगा से सीखा, समझा और आगे बढने का साहस पाया। आपके राजस्थानी नाटक और खासतौर से कविता संग्रह काफी चर्चित रहे। जिनमें आधुनिक काव्य प्रयोग तो है ही साथ आपने अपने सृजन में पौराणिक संदर्भो को समकालिन आधुनिक बोध के साथ रचकर हमेशा नवाचार किया है। स्व. रंगा का साहित्य अवदान व्यष्टि से समष्टि की यात्रा करता है।
समारेाह संयोजक कासिम बीकानेरी ने बताया कि स्व. लक्ष्मीनारायण रंगा की प्रथम पावन पुण्यतिथि पर अपनी आत्मिक भावांजलि एवं श्रद्धा सुमन अर्पित करने डॉ. उमाकान्त गुप्त, नन्दकिशोर सोलंकी, मधु आचार्य, मालचंद तिवाडी, दीपचंद सांखला, विजय शंकर आचार्य, राजेन्द्र जोशी, जाकिर अदीब, कासिम बीकानेरी, डॉ मोहम्मद फारूक चौहान, प्रेमनारायण व्यास, भैरूरतन रंगा, बीएल नवीन, शान्ति प्रसाद बिस्सा, शंकरलाल तिवाड़ी, राकेश चावला, गिरीराज पारीक, संजय सांखला, दयानन्द शर्मा, विपिन पुरोहित, अशोक जोशी, संगीता शर्मा, डॉ. कृष्णा आचार्य, डॉ. अजय जोशी, सुरेन्द्र कुमार व्यास, शकूर बिकाणवी, रजाक, कृष्ण कुमार पुरोहित, गोपाल गौतम, हनुमान छिपा, छगन सिंह, राजेन्द्र शुक्ला, राम चन्द अग्रवाल, शंभुदयाल व्यास, एन.डी.रंगा, जुगल किशोर पुरोहित, ज्योति सोलंकी, सीमा पालीवाल, डॉ. बसंती हर्ष, गिरधर जोशी, ज्योति सांखला, डॉ. नमामी शंकर आचार्य, रामसहाय हर्ष, मुकेश स्वामी, संजय कुमार व्यास, सुनील कुमार व्यास, गोपाल व्यास, विकास पारीक, विजय गोपाल पुरोहित, उमाशंकर व्यास, भंवरलाल शर्मा, दुर्गासती व्यास, वली मोहम्मद गौरी, मोनिका गोड, इसरार हसन कादरी, मुकेश पोपली, हनुमंत गौड, किशोर जोशी, हेमलता व्यास, प्रियदर्शनी शर्मा, प्रीति राजपुत, राजेश ओझा, डॉ. गौरीशंकर प्रजापत, तरविन्द्र सिंह कपुर, अविनाश व्यास, शेर अली, ओम प्रकाश स्वामी, घनश्याम साध, राहुल आचार्य, बिन्दु प्रसाद रंगा, रमेश कुमार मोदी, कन्हैयालाल सुथार, महेश कुमार व्यास, उमेश कुमार चौहान, हरिनारायण आचार्य, राकेश बिस्सा, शक्ति रतन रंगा, केशव प्रसाद बिस्सा, रजाक, शिवशंकर शर्मा, शिवशंकर व्यास, संतोष शर्मा, कार्तिक मोदी, भवानीसिंह, अरूण व्यास, मनमोहन व्यास, श्रीकांत व्यास, विजय किराडू, पुरूषोत्तम जोशी चन्द्रप्रकाश व्यास, ओमप्रकाश स्वामी, अजय भाटी, दीपक कल्ला, विजय शंकर पुरोहित, शुभम व्यास, दाउलाल ओझा, उमाशंकर मुथा, उमेश पुरोहित, विनय शंकर आचार्य, योगेश जोशी, दिनेश श्रीमाली, गिरधर किराडू, नासिर, नदीम अहमद नदीम सहित सभी ने स्व रंगा को नमन स्मरण किया।
सभी का आभार ज्ञापित करते हुए राजेश रंगा ने कहा कि स्व. लक्ष्मीनारायण रंगा की स्मृति में हुए गत एक वर्ष में मासिक कार्यक्रमों को बालकों, महिलाओं एवं युवाओं पर केन्द्रित रखा गया। भविष्य में भी अनेक साहित्यक एवं सृजनात्मक आयोजन की रूपरेखा बनाई जा रही है। अंत में सभी ने दो मिनट का मौन रखकर स्व. रंगा जी के तेल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।