प्रोफेसर डॉ. बिनानी का हुआ सम्मान

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भगवद्गीता में निहित है व्यवहारिक ज्ञान–डॉ. स्वामी

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बीकानेर , 23 दिसम्बर। श्रीमद्भगवद्गीता में अनेक प्रकार के योग की चर्चा की गई है यथा कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ध्यान योग आदि। ये विचार वरिष्ठ साहित्यकार एवं से.नि.वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. शंकरलाल स्वामी ने व्यक्त किए। वे गीता जयंती के अवसर पर श्री पूर्णानंद एज्युकेशन ट्रस्ट के सौजन्य से “श्रीमद्भगवद्गीता पर परिचर्चा” कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे।

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उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोद्धन में आगे कहा कि इनके अतिरिक्त दो ऐसे योग की बात भी गीता जी में स्थान स्थान पर आई है और जिनकी स्वतंत्र रूप से कोई चर्चा नहीं होती है वे अभ्यास योग और प्रयत्नयोग योग हैं। डॉ. स्वामी ने अपने व्यक्तिगत अध्ययन व विश्लेषण के आधार पर बताया कि गीता जी के अनेक श्लोकों में अभ्यास योग और प्रयत्नयोग योग की चर्चा की गयी है। डॉ. स्वामी ने कहा कि जीवन को व्यवस्थित रखने का व्यवहारिक ज्ञान बताने वाली शिक्षा ही श्रीमद्भगवद्गीता में निहित है।

परिचर्चा के मुख्य अतिथि के रूप में विचार रखते हुए पूर्व प्राचार्य,चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता आम आदमी को जीवन जीने के अनेक सूत्र प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति गीता जी में प्रदत्त इन सूत्रों को अपनाकर कार्य करें तो वे निश्चित रूप से जीवन में सफल हो सकते हैं। प्रोफेसर डॉ. बिनानी ने आगे कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में युवाओं के व्यक्तित्व विकास व कैरियर निर्माण के संबंध में भी अनेक सूत्र दिए हैं ।
इस अवसर पर परिचर्चा कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. शंकरलाल स्वामी ने प्रोफेसर डॉ. बिनानी का सम्मान किया। उन्होंने श्रीमद्भगवद गीता पर उनके द्वारा लिखित बहुचर्चित “गीत-गीता” नामक पुस्तक सहित उनकी लिखित व प्रकाशित अनेक पुस्तकें भेंट कर प्रोफेसर बिनानी को सम्मानित किया। डॉ.स्वामी ने प्रोफेसर बिनानी का सम्मान करते हुए कहा कि प्रो. बिनानी कविताएं, हाइकू, लघु कथाएं, युवाओं के लिए प्रेरक तथा अन्य विविध विषयों पर आलेख आदि लिखकर बीकानेर के साहित्य क्षेत्र की परंपरा को समृद्ध करने का प्रशंसनीय व उल्लेखनीय महती कार्य कर रहे हैं।

परिचर्चा के विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए पी बी एम हॉस्पिटल के से.नि.नर्सिंग अधीक्षक डॉ. जगदीश बारठ ने कहा कि सब ग्रंथों का सार वेद है। वेदों का सार उपनिषद है। उपनिषदों का सार श्रीमद्भगवद्गीता है। गीता का सार भगवान की शरणागति है। डॉ. बारठ ने कहा कि जो अनन्यभाव से भगवान के शरणागत हो जाता है, उसे भगवान संपूर्ण पापों से मुक्त कर देते हैं। परिचर्चा में आई जी एन पी के रिटाएर्ड एक्सीएन भानेश्वर कुमार, वरिष्ठ अध्यापिका श्रीमती सुनीता देवी, श्रीमती राधा वैष्णव, सुनील शर्मा आदि ने भी विचार रखे। इस परिचर्चा की उल्लेखनीय उपलब्धि यह रही की इसमें अनेक गणमान्यजनों के साथ ही सिंगापुर से स्ट्रक्चर इंजीनियर श्रीमती विश्वा देवी तथा सॉफ्टवेयर क्लाउड कम्प्यूटिंग इंजीनियर वैभव वैष्णव वर्चुअल रूप से शामिल हुए । परिचर्चा का कुशल संचालन सुनीता देवी ने किया। अंत में श्री पूर्णानंद एज्युकेशन ट्रस्ट की ओर से एस.पी. सारडा ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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