वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान जाएंगे दिल्ली, जानिए बीजेपी का बड़ा प्लान

विधानसभा चुनाव के बाद जब बीजेपी शासित राज्यों में नए सीएम बनाए गए तो शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे के राजनीतिक भविष्य की चर्चा खूब हुई। अब तस्वीर साफ होने लगी है। बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने रूठे शिवराज और वसुंधरा को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मना लिया है। 2024 के चुनाव के बाद ये सभी नरेंद्र मोदी के कैबिनेट मंत्री बनाए जा सकते हैं।

indication
L.C.Baid Childrens Hospiatl

नयी दिल्ली , 29 जनवरी.  बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनावों से पहले रूठे नेताओं के मान मनौव्वल में जुटी है। पीएम नरेंद्र मोदी की नजर अपने उन नए और पुराने नेताओं पर गड़ी है, जो नाराज होकर पार्टी छोड़ गए या कोपभवन में बैठ गए।

mmtc
pop ronak

जनाधार वाले सभी नेताओं को बीजेपी लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है। इस लिस्ट में कर्नाटक के जगदीश शेट्टार, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का नाम टॉप पर है।

khaosa image changed
CHHAJER GRAPHIS

पार्टी हाईकमान ने इन रूठे हुए नेताओं को चुनाव के लिए एक्टिव होने के संकेत दे दिए हैं। इसके बाद से सभी नेता एक बार फिर पार्टी के कार्यक्रमों में नजर आने लगे हैं। चर्चा है कि शिवराज सिंह चौहान को भोपाल या विदिशा से उतारा जा सकता है, जबकि वसुंधरा राजे झालावाड़ से चुनाव लड़ सकती हैं। शिवराज के लोकसभा चुनाव लड़ने के संकेत केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले भी दे चुके हैं।

…जब छलका था शिवराज का दर्द, वसुंधरा नाराज रहीं
पिछले दिसंबर में हुए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़ी जीत मिली। इस जीत के बाद इन राज्यों के पुराने क्षत्रपों का रोल बदल दिया गया। राजस्थान में भजनलाल शर्मा और मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने। छत्तीसगढ़ में विष्णु साय को चीफ मिनिस्टर बनाया गया।

इस बदले समीकरण में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष का पद स्वीकार कर लिया। राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने इस ऑफर को ठुकरा दिया। दोनों नेताओं ने अपने स्टाइल में अपनी-अपनी नाराजगी जता दी। शिवराज सिंह चौहान ने सभाओं में ‘राजतिलक की प्रतीक्षा में वनवास भी हो जाता है’ जैसे बयानों से अपना दर्द जाहिर किया। पोस्टरों से नाम और फोटो हटाने पर भी उन्होंने अफसोस जाहिर किया, मगर वसुंधरा खामोश रहीं। शिवराज सिंह चौहान तो कुछ दिनों के बाद पार्टी के प्रचार करने तमिलनाडु निकल गए। मगर वसुंधरा राजे ने नई सरकार के शपथ ग्रहण के बाद से पार्टी कार्यक्रमों में शामिल होना बंद कर दिया।

 

केंद्रीय नेताओं से संकेत मिलते ही एक्टिव हुईं वसुंधरा राजे

30 दिसंबर को भजनलाल के मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह से भी वसुंधरा राजे दूर रहीं। 5 जनवरी को पीएम मोदी ने पार्टी कार्यालय में विधायकों से मुलाकात की, वसुंधरा उस बैठक में भी शामिल नहीं हुई। 12 जनवरी को जब नरेंद्र मोदी जयपुर पहुंचे तब भी वह स्वागत के लिए नहीं आईं। इसके अलावा उन्होंने पार्टी के छोटे-बड़े कार्यक्रमों से भी दूरी बना ली और हाईकमान को अपनी नाराजगी जता दी। इसके बाद पार्टी नेतृत्व ने सीएम भजनलाल शर्मा को वसुंधरा को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी।

भजनलाल खुद वसुंधरा राजे के आवास पर जाकर केंद्रीय नेतृत्व का संदेश दिया। इसका असर भी नजर आया और वसुंधरा फिर सक्रिय हुईं। 25 जनवरी को जब पीएम नरेंद्र मोदी महीने में दूसरी बार फ्रांसीसी राष्ट्रपति की आगवानी के लिए जयपुर पहुंचे तो वह एयरपोर्ट पर स्वागत करती नजर आईं। इसके अलावा उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ा दीं।

 

नरेंद्र मोदी के लिए क्यों जरूरी हैं शिवराज और वसुंधरा

शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे के पास न सिर्फ राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव है, बल्कि दोनों के पास बड़ा समर्थक वर्ग है। मध्यप्रदेश में नए सीएम डॉ. मोहन यादव के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में भी शिवराज सिंह चौहान का जलवा नजर आया। लाडली बहना स्कीम के कारण महिला वोटरों में उनकी खासी लोकप्रियता है।

वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान दोनों पांच बार सांसद और छह बार विधायक रह चुके हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह का 18 साल और वसुंधरा राजे का 10 साल का कार्यकाल रहा है। बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए 400 सीटों का लक्ष्य बनाया है। इसके लिए जरूरी है कि 2014 और 2019 की तरह मध्यप्रदेश और राजस्थान में बीजेपी क्लीव स्वीप करे।

पिछले दो आम चुनावों में बीजेपी ने राजस्थान की 25 और मध्यप्रदेश की 28 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया था। राजस्थान में वसुंधरा राजे का प्रभाव सिर्फ हाड़ौती क्षेत्र में नहीं बल्कि पूरे राजस्थान में है। वह गुर्जर और महिला वोटरों में काफी लोकप्रिय रही हैं। अभी दोनों राज्यों की नए नेतृत्व को अपनी लोकप्रियता साबित करनी है, इसलिए बीजेपी लोकसभा चुनाव के दौरान किसी तरह की नाराजगी वाला रिस्क नहीं ले सकती है। इसके अलावा 2024 में जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी को केंद्रीय कैबिनेट में प्रशासनिक अनुभव वाले नेताओं की जरूरत पड़ेगी। शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा इस कसौटी पर खरे उतरेंगे।
बहरहाल लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद तस्वीर कुछ साफ़ हो पाएगी। क्यूंकि इस बार भाजपा के लिए लोकसभा में काबिज होना काफी सरल नहीं है।

bhikharam chandmal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *