हेमंत सोरेन की भाभी विधायक सीता बीजेपी में शामिल

  • कहा- झारखंड को झुकाना नहीं, बचाना है

रांची , 19 मार्च। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी और विधायक सीता सोरेन ने मंगलवार को भाजपा का दामन थाम लिया। दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में विनोद तावड़े ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर सीता सोरेन ने कहा कि झारखंड के महान सोरेन परिवार को छोड़कर मोदी जी के विशाल परिवार में शामिल हो रही हूं।

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मोदी जी पर लोगों के विश्वास को देखते हुए इस परिवार में शामिल हो रही हूं। मैंने भी झारखंड में कई संघर्ष किया। 14 साल जेएमएम में रही। मेरे ससुर और दिवंगत पति की अगुआई में झारखंड अलग राज्य बना। उनका सपना राज्य के विकास का था, लेकिन ये अधूरा रह गया। आज झारखंड की जनता बदलाव चाहती है। झारखंड को झुकाना नहीं बचाना है, इसलिए मैं भाजपा में शामिल हुई। मुझे उम्मीद है कि मेरे पति का सपना पूरा होगा। आने वाले दिनों में सभी 14 सीटों पर कमल खिलेगा।

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आज सुबह ही सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया। सीता सोरेन हेमंत के जेल जाने के 48 दिन बाद चंपई सोरेन को CM बनाए जाने से नाराज चल रही थीं। सीता सोरेन JMM सुप्रीम शिबू सोरेन की बड़ी बहू हैं।

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दुर्गा सोरेन जी का संघर्ष हेमंत खत्म करना चाहते हैं- निशिकांत

सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने पर गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने उन्हें बधाई दी है। सोशल मीडिया एक्स पर बीजेपी सांसद ने लिखा- सीता सोरेन जी मेरे परम मित्र स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जी की धर्म पत्नी हैं। उन्होंने उचित समय पर उचित निर्णय लिया। हेमंत सोरेन जी ने भ्रष्टाचारी सरकार दी, कल्पना सोरेन जी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। दुर्गा सोरेन जी का संघर्ष हेमंत खत्म करना चाहते हैं। अगला नंबर आंदोलनकारी चंपई सोरेन जी का है। सीता भाभी को बीजेपी में आने की बधाई।

परिवार की उपेक्षा का आरोप
सीता सोरेन ने अपने इस्तीफे में लिखा है। मैं सीता सोरेन, झारखंड मुक्ति मोर्चा की केन्द्रीय महासचिव एवं सक्रिय सदस्य वर्तमान विधायक हूं, आपके समक्ष अत्यन्त दुःखी हृदय के साथ अपना इस्तीफा पेश कर रहीं हूं। मेरे स्वर्गीय पति, दुर्गा सोरेन, जो कि झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा और महान क्रांतिकारी थे, के निधन के बाद से ही मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार रहें है। पार्टी और परिवार के सदस्यों द्वारा हमे अलग-थलग किया गया है, जो कि मेरे लिए अत्यन्त पीड़ादायक रहा है।

मैंने उम्मीद की थी कि समय के साथ स्थितियां सुधरेंगी, परन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ झारखंड मुक्ति मोर्चा जिसे मेरे स्वर्गीय पति ने अपने त्याग समर्पण और नेतृत्व क्षमता के बल पर एक महान पार्टी बनाया था आज वह पार्टी नहीं रहीं मुझे यह देख कर गहरा दुःख होता है कि पार्टी अब उन लोगों के हाथों में चली गयी है जिनके दृष्टिकोण और उद्देश्य हमारे मूल्यों और आदर्शों से मेल नहीं खाते।

सीता सोरेन ने कहा कि गुरुजी ने किया एकजुट करने का प्रयास
आगे लिखा- शिबू सोरेन (गुरुजी बाबा के) अथक प्रयासों के बावजूद जिन्होंने हम सभी को एक जुट रखने के लिए कठिन परिश्रम किया, अफसोस कि उसके प्रयास भी विफल रहें मुझे हाल ही में यह ज्ञात हुआ है कि मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ भी एक गहरी साजिश रची जा रही है। मै अत्यन्त दुःखी हूं। मैंने यह दृढ़ निश्चय किया है कि मुझे झारखंड मुक्ति मोर्चा और इस परिवार को छोड़ना होगा। अतः मैं अपनी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहीं हूं और आप से निवेदन करती हूं कि मेरे इस्तीफे को स्वीकार किया जाए।

बेटियों के लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहीं
सीता सोरेन समय- समय पर अपनी नाराजगी जाहिर करती रहीं, लेकिन पार्टी से अलग होने के संकेत नहीं दिए। JMM के टिकट पर तीसरी बार झारखंड विधानसभा पहुंची हैं। झारखंड की सियासत में सीता सोरेन की पकड़ भी मजबूत मानी जाती है, लेकिन हेमंत सोरेन और उनके परिवार की छाया में सीता सोरेन की दोनों बेटियां राजश्री और जयश्री अपनी मजबूती साबित नहीं कर पा रही थीं। सीता सोरेन चाहती हैं कि उनकी बेटियां भी राजनीति में आएं। दोनों ने दुर्गा सोरेन नाम की एक सेना भी बना रखी है।

JMM बोली- शिबू सोरेन सीता से बात करना चाहता थे
सीता सोरेन के पार्टी छोड़ने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि शिबू सोरेन खुद सीता सोरेन से बात करना चाहते थे। शिबू सोरेन ने कहा था कि यह मेरे परिवार का मामला है, इसे मैं खुद हल करूंगा। लेकिन इस्तीफे के तुरंत बाद शिबू सोरेन से बात करने से पहले ही सीता सोरेन ने भाजपा जॉइन कर लिया। अगर बातचीत होती तो बीच का रास्ता निकलता।

सीता लंका से मुक्त हुई-प्रतुल शाहदेव
सीता सोरेन के इस्तीफे पर बीजेपी के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि झारखंड में बड़ी बहू का दर्जा मां के समान होता है। सोरेन परिवार में उनका अपमान हुआ, ये देखकर पीड़ा होती है। ये अब जेएमएम का आंतरिक मामला नहीं रहा, वो सार्वजानिक जीवन में है। और जेएमएम की ओर से ट्वीट किया जा रहा है कि घर का भेदी लंका ढाए। चलिए, अच्छा है कि आपने ये तो स्वीकार कर लिया कि झारखंड में वर्तमान परिस्थितियां रावण राज वाली है। और कोई ना कोई विभीषण तो निकलेगा इस रावण राज का नाश करने के लिए। संक्षेप में कहूं तो आज सीता लंका से मुक्त हुई है।

देवरानी की राजनीति में एंट्री के 15 दिन बाद एग्जिट
15 दिन पहले, 4 मार्च को हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने गिरिडीह में JMM के स्थापना समारोह में अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत की थी। इसके ठीक 15 दिन बाद उनकी जेठानी सीता सोरेन ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है।

पार्टी ने कहा- फैसले पर विचार करें सीता

सीता सोरेन के इस्तीफे पर पार्टी नेता मनोज मनोज पांडे ने कहा- ये खबर दुर्भाग्यपूर्ण है। वे पार्टी की एक महत्वपूर्ण अंग हैं। सोरेन परिवार की बहू हैं। जब कोई भी अंग में थोड़ी भी चोट पहुंचती है तो पूरे शरीर को दर्द होता है। हम उम्मीद करेंगे कि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें। इस पार्टी में जो सम्मान उन्हें मिला, मुझे नहीं लगता कि कहीं और मिलेगा। उन्हें इस प्रकार का निर्णय नहीं लेना चाहिए था। अगर वे हमारे विरोधियों के बहकावे में आ गई हैं तो वे खुद अपना नुकसान करेंगी।

2012 में सीता सोरेन पर नोट फॉर वोट का आरोप लगा था
2012 में विधायक सीता सोरेन ने कथित तौर पर राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी आरके अग्रवाल को वोट देने के लिए रिश्वत ली थी। CBI ने आरोप लगाया था कि अग्रवाल ने सीता को अपने पक्ष में वोट देने के लिए 1.5 करोड़ रुपए की रिश्वत दी थी। ये पैसे सीता के पिता बी मांझी ने लिए थे।

2014 में झारखंड हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले रद्द करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सीता सोरेन ने याचिका में कहा कि अनुच्छेद 194(2) के तहत उन्हें इस मामले में छूट है।

इस मामले में 4 मार्च 2024 को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की सविंधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम 1998 में दिए गए फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे से छूट दी गई थी। अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी। आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त सांसद घूस स्वीकार करता है।

 

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